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सवासो गाथार्नु स्तवन.
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पुजल कर्मादिकतणो करता व्यवहारे ॥ करता चे ...
तन करमनो॥ निश्चय सुविचारे॥ आतम० ॥ ३५॥ व्याख्या-व्यवहारनयनी अपेक्षाए ज्ञानावरणीयादिक पुजन कर्मादिक नावनो कर्ता चेतन ने. तिहां अनूप चरितासभुत व्यवहारे कर्मनो कर्ता, अने उपचरिता स भुत व्यवहारे गृहादिकनो कर्ता, ए विशेष. तथा स्वजात्यूपचरितासचुत व्यवहारे पुत्रा दिकनो कर्ता, अने विजात्युपचरिता सद्भुत व्यवहारे धनादिकनो, स्वजातिविजात्युप चरिता सद्भुत व्यवहारे नगर प्राकारादिकनो; इत्यादिक नेद जाणवो. निश्चयनये सुविचारे चेतन कर्म जे राग वेष, तेहनो कर्ता जे. जे माटे अशुभ निश्चयनये य शुरू सनाव कर्ता माने. इव्यकर्म ते ए नये अनुषंगे आवे जे. जेम तैलाऽन्यंग क र्ता पुरुषने रज तैव्यानंगने अनुषंगे आवेडे. नक्तच॥तेलान्यगे शरीरस्यैत्यादि ॥३५
कर्ता शुद्ध स्वनावनो॥ नयशुझे कहीए ॥ कर्ता पर
परिणामनो॥बेन किरिया ग्रहीए ॥ आतम०॥३६॥ व्याख्या-गुरु निश्चयनये गुरुस्वनावनोज कर्ता घात्मा कहीए. परपरिणामनो कर्ता मानतां बे क्रिया ग्रहीए. बे क्रिया यावी जाय, एक जीव क्रिया अने बीजीय जीवक्रिया. एम मानतां तो अपसिद्धांत थाय, तेमाटे शुधवनावनोजकर्तामानीए.
ढाल चोथी॥“वीरमती प्रीतिकारणी” एदेशी॥ शिष्य कहे जो परनावनो॥ अकर्ता को प्राणी॥ दान दरणादिक केम घटे ॥ कदे सदगुरु वाणी॥
शवनय अर्थ मन धारीए॥ए आंकणी॥३७॥ व्याख्या-शिष्य पूजे जे के, जो परनावनो अकर्ता प्राणी कह्यो तो; अमुक दाता, अमुक हर्ता; इत्यादिक व्यवहार केम घटे? तथा दान हरणादिकनुं फलपण केमघटे? त्यां सदगुरू वाणी वदेने. जे शुरु निश्चय नयनो अर्थ अमे कह्यो, ते मनमांहे धरो. त्यहां केवल व्यवहार बाध थातां दोष नथी. दान हरणादिक फलतो यात्मनिष्टि तज तेराशे. पर तो निमित्तमात्र तेहज विवरी देखाडे. ॥३७॥
धर्म नवि दिए नवा सुख दिए ॥ परजंतुने देतो ॥ आप
सत्ता रहे आपमां ॥ एम हृदयमा चेतो॥ शुद्ध॥ ३ ॥ व्याख्या-परजंतुने देतो थको प्राणी, पापणो धर्म वाके० तथा थापणुं सुख
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