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________________ श्रीनिगोदत्रीशी. ७१३ - व्याख्या- तेणे गोले उत्कृष्टपद मूकी जे अनेरो निगोद रह्योले, तेणे निगो दे उत्कृष्टपद थण मूकते सर्वे दिशिए प्रदेश परिहरे रहे. अनेरे निगोदे अनेरो गोलो नीपजावीए. ॥॥ एवं निगोय मेत्ते ॥ खेत्ते गोलस्स होइ निप्पत्ति ॥ एवं निप्पसंते लोगे गोला असंखिळा ॥७॥ व्याख्या-एम निगोदमात्र खेत्रे गोलानी निष्पत्ति होय. एम लोकमाहे थ संख्याता गोला नीपजे. ॥ ॥ ववदारनएण इमं ॥ नकोसपया विशत्ति आचेव ॥ जं पुण नकोसपयं निब अंदोइ तं वुद्धं ॥ ए॥ व्याख्या- व्यवहारनये उत्कृष्टपद जाणवू. जेह कारणे उत्कृष्टपद एटलां वे. जेटला गोलाए असंख्याता : तेहकारणे उत्कृष्टपदे असंख्याता होय. एह | कारणे उत्कृष्टपदे व्यवहारे जाणवू ॥ए ॥ हवे जे उत्कृष्टपद निश्चयथी ते कहे. बायर निगोअ विग्गद॥ ग आई जब समहिया अन्ने ॥ गोला हुश्श सुबदुआ ने इय पयंत दुकोसं ॥ १०॥ व्याख्या-ज्या अनेरा कंदादिक बादर निगोद अधिका होय, थने ज्यां सूक्ष्म | निगोद विग्रहगते अथवा जुगते सूक्ष्म बादर निगोदमाहे उपजता अधिका होय, अने बादर निगोद विग्रह गते अथवा रुजु गते सूक्ष्म बादर निगोदमां हे उपजता अधिक होय, अने ज्यां पृथिव्यादिक विग्रहगते अथवा जुगते न वांतरे जातां अधिका होय, अथवा सूक्ष्म पृथ्वी कायादिक त्यहां रह्या अधिका होय, अने ज्यां मूलगा गोला थको अनेरा घणा गोला अधिका होय; ते निश्चय नये उत्कृष्टपद जाए. ॥१०॥ शहरा पडुच्च सुटुमे ॥ बदु तुल्ला पाय सो सयल गोला ॥ तो बायराइ गदणं कीरइ नकोसय पयंमि ॥ ११ ॥ व्याख्या-जो बादर निगोदादिक अधिका न लीजे तो एमां सूक्ष्म निगोद आश्री प्राय सघला ए गोला समान ले. ए माटे निश्चय तो उत्कृष्टपद कां न लाने. ए कारणमाटे उत्कृष्टपदे बादर निगोदादिकनुं ग्रहण करीए. ॥ ११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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