SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११ श्रीनिगोदत्रीशी. ॥ नमो जिनाय॥ ॥ अथ श्रीनिगोदात्रीशी लिख्यते ॥ लोगस्सेग पएसे ॥जहन्नय पयंमि जियपएसाणं॥ नकोसपए अतहा ॥ सब जिआणं च के बदुआ॥१॥ __व्याख्या-लोक चन्द रज्वात्मक, तेहना सघला असंख्याता प्रदेश ले. तेह लोकमांहे एकेको निगोद अंगुलने असंख्यातमे जागे, क्षेत्र रह्यं. अनंता जीव नुं शरीर ते निगोद कहीए. ज्यहां एक निगोद तिहां असंख्याता निगोद ले. थ ने जीवलोक प्रमाण असंख्यात प्रदेशात्मक ले. अतिशे संकोची असंख्यात आ काश प्रमाण बे. अंगुल असंख्यातनाग मात्र निगोद व्यापी रह्यो. एहवे बते एक आकाश प्रदेशी असंख्यात निगोदनो नागले. अथ गाथार्थो लिख्यते ॥ लोक मांहे एक आकाशप्रदेशे जघन्यपदे जीवप्रदेश केटला ले ? अने एक आकाश प्रदे शे उत्कृष्टपदे जीवना प्रदेश, चन्द रज्वात्मकलोकमांहे वर्तता ए जीव , अ ने एक आकाश प्रदेशे उत्कृष्टपदे जीवना प्रदेश जे एबेकमां कीया घणा ? ॥१॥ एत्रण प्रश्ननो उत्तर कहेले. योवा जहन्नयपए॥ जिअप्पएसा जि असंखगुणा ॥ नकोसपय पएसा ॥ त विसेसादिया नलिया ॥२॥ व्याख्या-सर्व जीव अाश्री जघन्यपदे जीवप्रदेश थोडा. एहथकी सर्व जीव असंख्यात गुणा अधिका. नत्कष्टपदे जीवना प्रदेश, तेह सर्व जीवथकी विशेष तः अधिका कह्या. ॥ २ ॥ हवे जघन्यपद अने उत्कृष्टपदनुं स्वरूप कहेले. तथ पुरम जहन्नपयं ॥ लोअंते जब फासणाति दि सिं॥बहिसिमुक्कोसपयं ॥ समब लोगंमि नन्नबं॥३॥ व्याख्या-ते बेकमांहे जघन्यपदे लोकतणे अंते होय. त्यहां खेम गोले त्र ऐ दिशाए स्पर्शना होय, अने त्रण दिशिए अलोके आवरी होय: तिहां जघन्य पद; अने ज्यां दिशिए स्पर्शना होय तिहां पूरे गोले उत्कृष्टपद जाणवू. बीजे | ठेकाणे न होय.॥३॥ हवे शिष्य पू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy