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________________ कागल. gor गुणस्थानक माफक नक्ति यतना परिणामे जल पुष्पादि विराधनानो दोषा वह नथी. साहमुं गुणावह ले. नही तो थनिगमन वंदनादि विधि पण नबिन्न थाए. उम जलादिके स्नात्र हीर फूल प्रमुखे पूजा तथा स्तोक जल पुष्फादिके पूजा नक्ति नइ गमे, अविनक्त परिणाम वधारतां बोधिबीजनोज नाश करे. उक्तंच पंचाशके." अणबारनवे, धम्मेणारंन अणानोगो लोएव पवयण खिं सा अबोहि बीचंति दोसाय॥२॥जो साधुने असत्कारी असन्मानने सूऊतुं अथवा असूफतुं देतां एकांत पापबंध कह्यो , तो नक्ति परिणाम वंचनाए स्तोक पुष्पा दि पूजाए शंकियाने बोधिबीजनो नाश किम न होए ! बलि ढौकन पुष्प पूजा सत्तर द अनेक विधि सूत्रे हुतो तेहज परंपराए कहेवाए . नक्तंच श्रीमहा निशीथे-सत्वमहया विबरणे, अरिहंत चरियानिहाणे, अंतगड दसाणं अयणे कसिणं वन्नेयं सिद्धांत पूर्वे हतो ते दवणां नथी, हवणां बिन्न पट्ट संध्यान्याये देवर्षि गणि दमा श्रमण वाचनानुगत पंचांगी गुरु थालंबतां किसी न्यूनता नथी. ___तथा कोई कहे सिद्धांते थोड़ें कह्यु होए, किहांक घएं कर्तुं . तिहां संदेह न करवो. ए सिद्धांत शैलीज. उक्तंच कब देसग्गहणं कब खिप्पंति णिरविसेसा इ, उक्कमवईकमाइसहाव सणिरित्ता"॥१॥एसर्व जाणी कुलक्रम दाक्षिाम्य मूकीन लीनक्तिए जिनपद पामवा नणी जिन पूजा कीजे. तोज जाण्यानुं सारखे. पामर लोकनो जय राखीने जनम सफलता न कीजे ते न घटे. श्रीवीतराग दासपणानो नाव तेहज लोकोत्तर विनय साचव्या विण किम निर्वहे? देवपूजा वेला सामायि कादि लेश्ने गुन परिणाम देखावे, तिणे साधुने दानावसरे पण सामायिक ले बूट Q. ऋत्रिम नाव अने यकत्रिम नावमा घणो अंतर जे. वली जे चंद ज्योत्स्ना समान केवली कह्या ले. ते परानाम आठमीयोग दृष्टिए केवल ज्ञानज्योत्स्नानी अपेक्षाए, अने दिगंबरी संमत नथाचार्य नपाशकाध्ययन टीकाकरे श्राविकाचार मध्ये लिरव्यु, अनात्मार्थ विना रागैः शास्ता शास्त्यसतो हित: ध्वनन सिल्पिकर स्पर्शान मुरजः किमपेक्षिते॥१॥ए श्लोक ते मादलनी परे ध्व नि मान्योडे, ते तो न घटे. जेमाटे बनने अदर परिणाम अदृष्ट ले. नाषा पर्याप्ति नाम कर्मनो उदय. तेमाटे नावारूपज शब्द केवलीने घटे. अने विकल्पपूर्वक तो सग ली बद्मस्थने . केवलीने तो स्थान निषेद्या थाहार विहारादिक सर्व क्रिया अ विकल्प पूर्वक अघाति कर्मोदय निमित्त माने तेहनेज तादृश देशना ध्वनि मान तां पूर्व दिगंबरने तो जिम जीतमाहेथी ध्वनि नीकले तिम मान्युं जोइए. तत्का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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