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________________ कागल. बंधे स्थापना इति कृति संबंधे जावसंबंध बे. इव्य समवाय संबंधबे. नाव ते सा काणावले. ए चार निदेपनी नावना णमो बंनीए लिवीए ए नगवती प्रतीक परमार्थ विचारतांज श्री मेघजी ऋषिने गुण थयो. इहां शिष्यजनना हितने अर्थ अस्मत् कृत जैन तर्क जाषानुसारे निक्षेप नय जोजनिका कही. नामादित्रण निक्षेप इव्यास्तिक नयज माने; पर्यायास्थिकनय नावज माने. इव्यास्तिक नयना नेद संग्रह व्यवहार एबे नैगम सामान्य ग्राही संग्रहमां जे अंतर्भवे विशेष ग्राही व्य वहारमा जे, अंतर्नवे तेमाटे त्रीजो नेद नथी. पर्यायार्थिक चार नेद ऋजुसूत्रा दिक ए सिद्धसेन मत तथा विशेषावश्यकमां ' ईलामइतियंदव हियस्सनावो अप कवणियस्ससंगढ़ववहारा पढमंगस्स सेसाठइपरस्त ' GOG ए गाथाए स्वमते नमस्कार निक्षेप विचार स्थले कयुं. 'जावंचिय सदहणा यासेसाई ति सङ्घरिकेवे. शब्द नय शुद्धपणा माटे सर्व निदेपा वांबे. ऋजु सूत्रांत चार अशुद्धपणा माटे सर्व निक्षेप वांबे. ए एहनो अर्थ. ऋजुसूत्र नाम निक्षेप जावनिक्षेप ए बे वांबे. एम कोइ कहेबे, ते जूतुं; जे माटे नऊ सुवस्स एगे वत्ते एवं दवा वस्सय ए सूत्रेज कजुं सूत्रनेज इव्यान्युपगम देखायो. पिंमा अवस्थाए सुवर्णादि इव्य अलंकार नविष्यति. कुंमलादि पर्याय नावहे तुपणे वाढतो विशिष्ट इंशयनिलाप हेतु नूत साकार स्थापनाप्रत्ये ए नय न माने तो ए नय सूक्ष्मदर्शी किम थाए ? तथा इंद्रादि शब्द मात्र अथवा तदर्थ र हित इंड्रादि शब्द नाम गोपाल दारकने नाव कारणपणाने यविशेषे नामें वांढ तो ए नय नाम स्थापना बे निदेपने किम न वांबे ? जो घागले जइ युक्ति दर्शी था. सादमुं वाच्य वाचक नाव संबंधे संबंध नामयी इंड्मूर्त्ति लक्षण इव्य विशिष्टस्तदाकार स्थापना माने, इंड् पर्यायरूप नावनेविषे तदात्म्य संबंधे रह्या माटे विशेष. तो ए वे निपा कजुसूत्र केम उत्थापे ! Jain Education International " वी एहने मनाववा संग्रह व्यवहार ए बे नय स्थापना वर्ज त्रण निदेपामाने बे. veg लाएककले ते पण जुटुं. तेमाटे एक संग्रहिक, बीजो प्रसंग्रहिक अथवा अर्थिक द परिपूर्ण नेद एत्रण नैगम प्रापना वांडे; ते तो अवश्य मानवुं संग्रह व्यवहारान्य व्यार्थिक नये स्थापना निदेषनुं वर्जन नथी. तेमाटे खाद्य पदे सं यह नय स्थापना निक्षेप बजे खावे. जे माटे तन्मत संग्रहिक नैगमथी जिन्न d. द्वितीय पदे व्यवहार नये स्थापनान्युपगम बजे खावे. जे माटे तन्मत संग्रह नैगम नयी अविशिष्ट बे. तृतीय पक्ष निरपेक्ष संग्रह व्यवहार न माने, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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