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________________ होवाने लीधे या प्रकरण रत्नाकर' नामर्नु मोटुं पुस्तक कहामवानी थागमज मारा स्व धर्मी नाश्योनी मने मदत लेवी पडी. सारा नाग्यजोगे योग्य रोते मदत पण मली यावी, तेथी या पुस्तकनो प्रथम नाग समाप्त करी ते गया जेष्ट मासमा प्रति कसो बने था बीजो नाग पण हमणा पूर्ण थयो जे तेथी दुं मने कतरुत्य समजुं . आ ग्रंथ प्रसिद्ध करवाने मुख्य मदत करनार शेठ. केशवजी नायकले. हरेक पदार्थने सम योग्यतावान वा अधिक योग्यतावान रक्षण करी शकेले एq बहुधा दीवामां आवेडे. जेम ग्रीष्म ऋतुना तापथी तप्त थएला पर्वतने मेघज रक्षण करेले, तेम ज्ञान- रक्षण ते उसम योग्यतावान पुरुषथोज थई शकेले. यद्यपि सकल चतुर्विध संघने ज्ञाननी रक्षा करवानो अधिकार , तथापि सर्वने तेवं सामर्थ्य होतुं नथी. माटे योग्यतावानज रक्षण करी शकेले. तेवी योग्यता कोई विरलानेज होय बे, केमके, बाह्य सर्व लदम्यादि समृधि बतां अंतरनेविषे जिन वचन श्रज्ञानरूप समू दि पण जोये . तेमांनी बाह्य समृद्धि तो घणायोने होय तेम बतां जिनवचन श्रमान दोतुं नथी तो तेनाथी कोई पण एबुं गुन कृत्य थई शकतुं नथी. तेथी बाह्य संपत्ति सहित प्रवचनश्रमान पण जोये . बाह्य उत्तम संपदा अने अंतर स्वधर्म निष्टा ए उत्कृष्ट पुण्यानुबंधीपुण्यनुं फल . ते कोईएकनेज होय . एनुं प्रत्यद न दाहरण आ वर्तमान विशतकरूप कालनेविषे श्रेष्ट केशवजी नायक जे. केमके, एवी योग्यतावान बीजो कोई पुरुष हाल दीवामां आवतो नथी. एओ बाह्य लदम्यादि सं पत्तियुक्त बतां अांतर धर्म सम्यक्त्व अज्ञानरूप अत्युत्तम संपत्तिए करीने पण युक्त ने. जेनेविषे पंच प्रतिरूप अंतराय कर्मनो क्ष्योपशम अाधुनिक सर्व संघ जनोना कर्तीय धिक दीवामां आवे एमना जेवू घातप नाम कर्म तो कोई नूपने पण क्वचित् उदय थयखं दृष्टि गोचर थशे! तेमज आदेय नामकमें, अंगोपांग नाम कर्म, यशः कीर्तिनाम कर्म,प्रमुख गुन प्रकृतिथोनुं एमणे एवो तो नत्कृष्टबंध कस्यो के, तेवो हाल दक्षानरत्ता ईमां कोई बीजानेविषे क्वचित् दीवामां आवसे एवा पुरुषने झुं अशक्य होय? थने कीयु कार्य करवाने समर्थन पाय ! अर्थात् सर्व कार्य करवाने शक्तिमान ले. पूर्वे थईगएला सं प्रति राजा तथा वस्तुपाल तेजपाल अने कुमारपाल प्रमुख महत् प्रनाविक पुरुषोनी पठे एमणे पण वर्तमान कालानुसार धर्म दीपनार्थ तथा स्वश्रज्ञान दर्शनार्थ श्रीथर्हदेवा लयो तथा अंजन शलाका प्रमुख उत्तम धर्म कृत्यो कस्यां जे; ते बधाोथी पण य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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