________________ 344 अध्यात्ममतपरीता. __व्या० गन्हमा बता इव्यथी जे अनेकता थायडे, तेज नावथी एकता थायले. न्यथा गुर्वाज्ञादिक अंकुशविना चित्तरूप हस्ति संसाररूप बनमा फरतां एकत्व नाव नारूप वेलीनु उन्मूलन करी नाखे. अतएव नगवंते “एकस्त अधि धम्मो” इत्या दिक प्रवंधे करी एकाकी विहारनो निषेध कस्योते. श्रीदशवैकालिक सूत्रनेविषेप ए आम कडं "नया ललिता निनणं सयायं गुणाहि अंवा गुण समंवा : इकोवि पावाइ विवजयंतो, विहरेऊ कामेसु असऊमाणो. आ गाथामां आम कडंडे के, ज्यारे पोताथकी अधिक गुणवालो अथवा समान गुणवालो मले नही, त्यारे एकाकी विहार करवो, ते गीतार्थ आश्री जाणवू. केमके, ते.पापने वर्जीने कामनेविषे असंग करेले माटे तेने एम कह्युजे. अने अगीतार्थ तो गीतार्थनी निश्राविना पाप वर्जी शके नही. तेम कामासंगपण बाली शके नही. अतएव “गीयबो अविहारो, बी गीय मीसित नणि॥ इत्तो तश्य वि हारो, नाणुना जिणवरेहिं" ए गाथामां खुलीरीते अगीतार्थने एकाकी वि हारनो निषेध कस्यो. माटे गढमां रही, गुरुकुलवास सेवी, गुनादिकनो अन्या स करी, अने साधुसंग बतां पण अंतरंग निर्लेप रहीने जो अध्यात्मनावना नाविये तो परमानंदनी प्राप्ति थायजे. // 17 // किं बढुणा श्द जद जद रागद्दोसा लढुं विलऊंति // त द तह पयट्टिअवं एसा आणा जिणंदाणं // 11 // व्या० घणु शुं कहिये, जेजे प्रकारे रागदेष विलय थाय तेवी रीते प्रवर्तवं. ए| ज श्रीवीतरागदेवनी आझा बे. // 171 // असप्पमयपरिका एसा जुत्तीदिं पूरिया जुत्ता // सोहिं तु पसायपरा तं गीयबा विसेस विक // 12 // व्या० आ अध्यात्ममतपरिक्षा युक्तिएकरी पूरी कीधी, तद्रूप जे आ ग्रंथ डे, तेनुं विशेषज्ञ जेगीतार्थ जे ते मजनपर कृपा करीने शोधन करो ए विज्ञापना. 172 शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं // यस्यासन् गुरवोऽत्र जीतवीजयप्राज्ञाः प्रष्टाझया चाजते सनयानयादि विजयप्राझाश्च विद्याप्रदाः // केम्वा यस्यच सद्म पद्म विज यो जातः सुधीः सोदरः सोयं तत्वमिदं यशोविजयश्त्याख्यानदाख्यातवान् // 1 // इति पंमित यशोविजयजी उपाध्यायकृत श्री अ ध्यात्ममतपरीक्षाग्रंथो बालावबोधसहितः समाप्तः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org