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________________ ३३८ अध्यात्ममतपरीक्षा. बस कपिस्सव इवीए कपित्र्याइ सिद्धीवि ॥ ए विणा विसिद्ध चरित्र्यं तासिं तु विसिधकम्मखनं ॥ १६५ ॥ पावं तद चित्तं य पुमफलाए केवली दवे ॥ परमा सुनू राय परमोरालिन देहो ॥ १६६ ॥ व्या० कोई आशंका करे के, जेम जातिनपुंसकने मुक्ति याय नही, तेम स्त्रीने पण मुक्ति यती नथी. एम बतां जो कहेशो के, जेम कृत्रिमनपुंसकने मुक्ति थायले तेम विद्याप्रयोगादिकेकरी युक्त स्त्रीने मुक्ति थायबे; तो तेम पण न संनवे; के मके, स्त्रीने विशिष्ट क्रियानुष्ठान होतुं नथी; विशिष्ट क्रियानुष्टानविना विशिष्टकर्म नो यथाय नहींः ने विशिष्ट कर्मनो दय थयाविना मुक्ति यती नथी. तथा स्त्रीपj जे बे ते पापप्रकृतिरूप नदीनुं करणं बे; ते पुण्यरूप सुरतरुना केवलज्ञा नरूपफलने सेवन करनारा केवलीनेविषे केम संनवे! अर्थात् पापप्रकृतिरूपस्त्री ने केवल ज्ञान संनवे नही. तथा स्त्री परम अशुचिबे, तेने परमोदारिक शरीर पण संनवे नही. केवलीनुं शरीर तो परमोदारिक होय. तेवुं तो स्त्रीनुं शरीर कवाय नही, माटे स्त्रीने केवल ज्ञान केम संनवे ? ॥ १६५ ॥ १६६ ॥ ० शंकाने युक्तिवडे दूषित करेले : Jain Education International एय मयुत्तं जम्दा विचित्तभावा विचित्तकम्मख ॥ चित्तं प्रावं जिलाण पाए गए वित्ति ॥ १६७ ॥ ते व्या० स्त्रीने क्रियाविशिष्टविना विशिष्ट निर्जरा न थाय, एम जे वादिए कह्युं प्रयुक्त a. केमके, नावविशेषे फलविशेषले क्रियाविशेषविना नावविशेष न थाय; एमां एकांतता नथी. केमके, जो शक्तिनो निग्रह करीने किया करिये तो जनावनी हानि थाले, अन्यथा नावनी हानि यती नथी. तथास्त्री पणुं पा परूप बे, एमां पण एकांतता नथी, केमके, सम्यक्तना बजयी मिथ्यात्वादिक पाप नो दय याय. एम पूर्वेकही याव्या बैयेः घणुंकरीने तीर्थकरने विषे स्त्रीपणुं न श्री होतुं, एटले बहुधा स्त्री तीर्थकर यती दीगमां यावती नयी तेथी स्त्रीपणुं पाप रूप बे एम जो कहिये तो विप्रत्वादिक पण तेवांज कहेवा जोये केमके, बहु धा तीर्थकरने विषे विप्रत्वादिकनो पण अनाव होय; अर्थात् घणुंकरीने त्रि यादिक तीर्थकर यएला दीगमां खावे. तेथी युं विप्रादिकने मोनो संभव न For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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