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________________ अध्यात्ममतपरीक्षा. ३३७ पृथ्वीसुधी जती नथी, तथापि तेने मोदसुरखनी प्राप्ति थायडे एमां कोई विरोध नथी. केटलाएक कहे के, अधोगतिने परमोत्कर्ष होयडे, ते एकांतताथी संनवे नही. केमके, जेवी कारणनी उत्कर्षता होय, तेवीज कार्यनी उत्कर्षता कहेवा | य; एवो नियमले परंतु एथी अन्य कोई नियम नथी. स्त्रीनेविषे जो युदादिक महारंनरूप कारणनो संनव होय, तो सातमी नरक पृथ्वीसुधी जवाय: तेर्बु | कोई कारण नही होवाने लीधे स्त्रीथकी त्यांसुधी जवातुं नथी, किंतु बठीसुधीज जवायले; अने पुरुष तथा मत्स्यनेविषे तेवा कारण होवाथी तेश्रोथी सातमीनर क पृथ्वीसुधी जवाय. एवी रीते अधोगतिनेविषे जवासारू पुरुष अने स्त्रीना | कारणोनी विलक्षणता होवाथी सरखं गमन थतुं नथी, परंतु ऊर्ध्वगतिनेविषे जवासारू बन्नेनां कारणो सरखां होवाथी सरर, गमन थवानो अवश्य संनव . जेम पुरुषनेविषे शीलादिक गुणरूप ऊर्ध्वगमनना कारण होय तेम स्त्रीनेविषे | पण होय. ए हेतुथीज स्त्रीने वजषननाराचसंघयणनो संनव जे. एम न मानवामां कोई युक्ति नथी. ए प्रकारे स्त्रीना निर्वाणना निरोधनेविष दिगंबरीयो | ना हेतुनो निषेध कस्यो ; हवे स्त्रीनो निर्वाण थवामां अनुमान कहेजेः-हरेक व | स्तुना अनुमानमां पद, साध्य, हेतु तथा दृष्टांत ए चार प्रकार होय. एटले ए चार पदार्थोए करी सिह थएली वस्तुने अनुमित कहेडे; अने एचार पदार्थोए करी सिह थवा योग्य वस्तुने अनुमेय कहेजे. जेम के, अग्नियुक्त पर्वत सिद्ध कर वो होय, ते अनुमेय कहेवायजे; अने एज पद कहेवायचे. अनुमान करती वखते “पर्वतम्पदीकत्य, वन्दिमत्वंसाध्यते, धूमत्वात् इतिहेतुः, पाकगृहवत्, य त्रयत्रधूमः तत्रतत्र वन्हिः” पर्वतनो पद करीने तेने अग्नियुक्त सिह करेजे; एमां हेतु पर्वतनपर नीकलतुं धूमाथु बे, जेम रसोई करवाना गृहमा अग्नि होवा थी धूमाथु नीकलेले, केमके, ज्या ज्यां धूमाथु होय त्यां त्यां अग्मि होयडे, ए दृष्टां त . तेम “कांचित्स्त्रीव्यक्तिं पदीकत्य, मोक्षाविकलकारणता साध्यते, दीक्षाधि कारत्वात्, पुरुषवत्, येये दीदाधिकारिणः ते ते मोदा विकलकारिणः” कोईए क स्त्रीनी व्यक्तीने पदय करीने तेने मोदना अविकलकारणवंत लिक करे; एमां दीक्षानो अधिकार हेतु जे; अने पुरुषजातिनी पठे ए दृष्टांत डे, केमके जे जे दी दानो अधिकारी होय ते ते मोदना अविकलकारणवंत होयः ॥ १६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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