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________________ ३०२ अध्यात्ममतपरीक्षा. उत्पन्न यायले, त्यारे जेम सर्प बाहेर खामो तिडो चाले पण ज्यारे राफडांमां पे सेबे व्यारे पांसरो यई जायले तेम श्रवणादिकने विषे बुद्धिनी जे सरला थवी ते शुश्रू पा कहिये, श्रवणादिक कस्याथी जेम जेम बुद्धि शुद्ध यती जायले, तेम तेम या त्मतत्वचिंतननी उत्पत्ति यती जायबे ते विविदिषा कहिये, ग्रात्मतत्व चिंतनथ की शुश्रूषा जे ते श्रवणादिगुणरूप थायवे, तेविना ते खानासमात्र कहेवाय ; पण गुण कवाय नही, यात्मतत्वचिंतन वडे श्रवणादिक गुण उत्पन्न थयाथी सम्य तनी उत्पत्ति थायले, ते सम्यक्तना पांच लिंग शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा, तथा प्रास्तिक्यता; एवो खात्मानो जे गुन परिणाम तेने परमतने विषे विज्ञप्ति कहेबे, प्रा त्माना सुनपरिणामथी धर्मनो नाव उत्पन्न थायले; तेणेकरी नावांतरनी वृ Fs थाले, एम उत्तरोत्तर, जाववृद्धिकरी प्रविरति देश विरत्यादिक गुणस्थान श्रे चढी घातकर्मनो यकरी कृतकृत्य केवलीयाय एनो सारी रीते विचार कर जुवो एटले सहज जलाई यावेळे ॥ ६ए ॥ ७० ॥ ० एवं युक्तिपूर्वक वचन सांजलीने पीडितकर्ण थयो थको परवादी बोल्यो:न जय सो कयकिच्चो घरसदोसविरदिन देवो ॥ ता बुदता नावा जुइ कम्मा कवलनोजी ॥ ७१ ॥ व्या० देव तो डारदोषरहित बे; घने कृतकृत्य बे; ए सर्व मान्यबे ने तमे पण जो एमज मानता होतो तेने कवजाहार करनारो केम कहोबो ? कव लाहार अंगीकार करयाथी कुधा तृषा पण अंगीकार करवा जोईशे. केम के, कुधा तृषाविना कवलाहार संनवे नही. जो कुधा तृषाने पण अंगीकार करशो तो परमेश्वरने डारदोषरहित केम कही शकशो? केम के, कुधा खने तृषा ए बे दोष तो कवलाहारना ग्रहणाथी सिद्ध थायले. त्यारे शुं केवजी सोलदोषरहित बे, जो एम मानशो तो श्रागमवचननो अपमान थशे. यतः “कुत्पिपासा जरातंक, जन्मांतकनयस्मयाः ॥ न रागद्वेषमोहाश्च यस्याप्तः स प्रकीर्त्यते . " इति दिगंबरयं थांतरगत उपासकाध्ययने कुधा, तृषा, जरा, क्षय, जन्म, यम, इहलोका दिनय, य हंकार, राग, द्वेष, मोह, चिंता, अरति, निशा, विस्मय, विषाद, स्वेद, तथा खेद ; ए डार दोष केवलीने नथी एम कयुंबे. तेश्रोमाना कुधा तथा तृषा ए वे दोष तां कृतकृत्यता के संनवे ? माटे केवलीने जो कवलाहारी कहो तो बे दोष अंगीकार करो. ॥ ७१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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