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शृंगारवैराग्यतरंगिणी.
मुक्तिरूप नगरीना मार्गमां स्त्रोना वालरूप सर्प जो खाडे यावे एटले तेश्रोमां मोह उत्पन्न याय तो मोटो विघ्न थायले, माटे ए सर्वथा त्याग करवा योग्य d. उपर कं के, स्त्रीप्रना बांधेला वालने व्यालरूप जाए; ए ठेका कविए च मत्कार राख्यो ने के, वालशब्दमां यकार मल्याथी व्याजशब्द थायबे; माटे वा लने व्याल कहेतुं योग्य बे. एने श्लेषालंकार कहेले.
या वृत्तमां, सर्प चालती वखते जेम वांकोचूको थई जायते; तेम स्त्रीना के श विडीयाला होय तेने कविलोको श्रेष्ठ कहेबे खने जेम सर्पनो रंग यति कालो होय, तेम स्त्रीना यति काला रंगवाला वाल होय, तो ते श्रेष्ट कहेवाय बे एवं रीते वालन] जे श्रेष्ठता बे, ते विषयक शृंगार रस दर्शाव्योबे, घने जे म मार्गमा सर्प ग्राम यावे तो कार्यसिद्धि थाय नही; तेम गुणस्थानक निसर fी चडतां पुरुषने वचमां स्त्रीना केशनो मोह उत्पन्न थयो तो तेथी श्रेणी यारो हनी सिद्धि यती नथी; एवी रीते वालनी जे निर्भर्त्सना कीधीले ते विषयक वैरा ग्य रस दर्शाव्यो. ॥ १ ॥
ये केशा लसिताः सरोरुददृशां चारित्रचं प्रनाभ्रंशां नोद सहोदरास्तव सखे चेतश्चमत्कारिणः ॥ केशान्मू र्त्तिमतोऽवगम्य नियतं दूरेण तानुत्सृजेनचेत् कष्टपरंप रापरिचितः शोच्यां दशामेष्यसि ॥ २ ॥
अर्थ :- हे सखा, कमलपत्रना जेवां नेत्रोवाली स्त्रीना देदीप्यमान केश, चा रित्ररूप चंड्नी ज्योतिनो नाश करवाविषे मेघजेवा बे; अने जे तारा अंतःकरणमां चमत्कार उत्पन्न करेबे, तेस्रो मूर्त्तिमान चतुरिंडियगम्य क्लेश बे; एम निश्चय जालीने दूर नाखी दे. जो एग्रोनो तुं त्याग करीश नही, तो तुं कष्टपरंपराएं युक्त rutunt शोक करवायोग्य व्यवस्थाने पामीश. या श्लोकमां स्त्रीना केशने क्लेशनुं सादृश्य कयुंबे, ते खावी रीते " लसित " ए शब्द मूलमां बे, एनो अर्थ लकारे कसित के तां युक्त, केशशब्दनी क्लेश शब्द थायले.
या वृत्तमां, मेघना वर्णनी साथै स्त्रीना केशनी बराबरी करीबे. जेम या काशने विषे मेघ प्रति शोभायमान दीगमां यावे, तेम स्त्रीना मस्तकने विषे केश प्रति लसित एटले देदीप्यमान दीगमां श्रावे. स्त्रीनां केश जे चलकता हो यते श्रेष्ठ कहेवाय. ए मुख्य केशनी श्रेष्टतानो विषय कहेतां अंतरगत ते केश
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