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सम्यक्त सडसम्बोल सजाय.
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रे । त्रीजुं लिंग नदार ॥ विद्या साधक तणि परे रे । आलस नविय लगार रे । प्राणी॥१॥ ॥ ढाल ॥ प्रथम गोवालातणे नवेजी, ए देशी॥ ॥अरिहंत ते जि न विचरता जी ॥ कर्म खपी दुआ सि६ ॥ चेश्य जिण पडिमा कही जी। सूत्र सिद्धांत प्रसिः । चतुर नर, समको विनय प्रकार । जिम जहिये समकित सार। चतुर ॥ १५ ॥ धर्म खिमादिक नाखेयो जी। साधु तेहना गेह॥याचारय था चारना जी। दायक नायक जेह । चतुर ॥ १६ ॥ नपाध्याय ते शिष्यने जी। सूत्र नणावण हार ॥ प्रवचन संघ वखाणिये जी। दरसण समकित सार । च तुर ॥ १७॥ नगति बाह्य प्रतिपत्तिथी जी। हृदय प्रेम बहुमान ॥ गुण थुति अवगुण ढांकवा जी। आशातननी हाण । चतुर ॥ १७ ॥ पांच नेद ए दश त णो जी। विनय करे अनुकूल ॥सीचे तेह सुधा रसें जी। धर्म हद मूल । चतुर॥ ॥१॥ ढाल ॥ ॥धोबीडा तूं धोए मन, धोतीयू रे॥ ॥एदेशी॥ ॥त्रण दिसम किततणी रे । तिहाँ पहिली मन शुदिरे ॥ श्री जिनने जिनमत विना रे । फूठ स कल ए बुद्धि रे॥ चतुर विचारो चित्तमां रे । टेक ॥ २० ॥ जिन जगते जे नवि थयु रे । तेबीजाथि नवि थाय रे॥ एवं जे मुख नाखिये रे। ते वचन शुद्धि कहिवाय रे । च तुर० ॥ २१॥ळेद्यो नेद्यो वेदना रे । जे सहतो अनेक प्रकाररे ॥जिण विण पर सुर नवि नमे रे। तेहनी काया शुरू नदाररे । चतुर ॥२॥ ॥ढाल ॥मुनि जन मारगनी, ए देशी ॥ ॥ समकित दूषण परिहरो । तेमा पहिली ने शंका रे ॥ ते जिन वचन मां मत करो ॥ जेहने समनप रंकारे । समकित दूषण परि हरो ॥ टेक ॥ २३॥ कंखा कुमतनी वांडना । बीजूं दूषण तजिये ॥पामी सुरतरु परगडो। किमबागल नजिये ॥ समकित ॥ २४॥ संशय धर्मना फलतणो । वित्तिगिला नामे ॥ त्रीजूदूषण परिहरो। निज गुन परिणामे ॥ समकित० ॥ २५ ॥ मिथ्यामति गुण वर्णनो । टालो चोयो दोष॥ उन्मारगि शुगतां दुवे । उनमारग पोष ॥समकित० ॥ २६ ॥ पांचमो दोष मिथ्यामती। परिचय नवि कीजे ॥ श्म गुन मति अरविंदनी । न ली वासना लीजे ॥ समकित ॥ २७॥ ॥ ढाल ॥ नोलिडा हंसारे विषय न रा चीये, ए देशी ॥ आठ प्रनाविक प्रवचनना कह्या । पावयणी धुरि जाण ॥ व तमान श्रुतना जे अर्थनो । पार लहे गुण खाण ॥ धन धन शासन मंमन मु निवरा । टेक ॥ २७ ॥ धर्म कथी ते बीजो जाणिये । नंदिखेण परि जेह ॥ नि ज उपदेशेरे रंजे लोकने । जे हृदय संदेह । धन धन ॥श्ए॥ वादी त्रीजोरे त के निपुण नस्यो । मनवादी परि जेह ॥राजदारेरे जयकमला वरे । गाजतो जिम
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