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सूक्तमुक्तावली.
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ज्ञान संसारमां बे ॥ नवजलनिधि तारे सर्व जे दुःख वारे ॥ निजपरहित हेते ज्ञान ते कां न धारे ॥ ए ॥ यवऋषि इक गाथा बोधथी नै निवास्यो || इक पदथि चिलातीपुत्र संसार वास्यो ॥ श्रुतनात सुज्ञानी मास तुंबादि थावे ॥ श्रुतथि अन य हाथे रोहिल्यो चोर नावे ॥ १० ॥ श्रथमनुष्यजन्मविषेः ॥ नवजलनधि नमंतां कोइ वेला विशेषे ॥ मनुजजनम लाधो डुल्नहो रत्न लेखे || सफल कर सुधर्मा ज जन्म ते धर्मयोगे || परनवसुख जेथी मोक्षलक्ष्मी प्रनोगे ॥ ११ ॥ मनुजजनम पा मी खालसे जे गमे ॥ शशिनृपतिपरे ते शोचनाथी नमेवे || डुलह दश कथा यूं मानुखोजन्म ए बे | जिनधरम विशेषे जोड़तां सार्थ ते बे ॥ १२ ॥ अथसन विषेः ॥ सदयमन सदाई ः खियां जे सहाई ॥ परहित मतिदाई जास वाणी मि ठाई ॥ गुणकर गहराई मेरुज्यूं धीरताई ॥ सुजनजन सदाई तेह यानंददाई ॥ १३ ॥ जर पुरजन लोके दूहव्या दोष देई || मनमलिन न थाए सज्जना तेह तेई ॥ डुप वजनकपुत्री अंजना कष्टयोगे ॥ कनकजिम कशोटी ते तिली शोल जोगे ॥ १४ ॥ अथ विषेः ॥ गुणगहि गुण जेमां ते बहू मान पावे ॥ नर सुरनिगुणे ज्यूं फूल शीशे चढावे ॥ गुणकरि बहु माने लोक ज्यूं चंड्माने ॥ प्रति कृश जिम माने पू ने त्यूं न माने ॥ १५ ॥ मलयगिरि कडे जे जंबुलिंबादि सोई । मलयजतरु संगे चंदना ते होई ॥ इम लहिय वडाइयूँ कीजिये संग रंगे || गजशिरचडि बेठी ज्यूं प्रजा सिंहसंगे ॥ १६ ॥ अथन्यायविषे ॥ जग सुजस सुवासे न्यायनी उपासे ॥ व्यसन रित नासे न्यायथी लोक वासे ॥ इम इदय विमासी न्याय अंगी करी जे ॥ न परिहारी जे विश्वने वश्य कीजे ॥ १७ ॥ पशु पण तस सेवे न्यायथी जें न चूके ॥ अनयपथ चले जे नाइ ते तास मूके ॥ कपिकुल मिलि सेव्यो रामने सीस नामी ॥ नयकरि तज्यो ज्यूं जाइए लैकस्वामी ॥ १ ८॥ हय गय न सहाई युद्ध कीर्ती सदाई || रिपुविजय वधाई न्याय ते धर्मदा ॥ धरमनय धरे जे ते सुखे वैरि जी || धरमनय विणा तेहने वैरि कोपे ॥ १७ ॥ धरमनय पसाये पांगवा पंच तेई || करि युधे जय पाम्या राज्यतीला लहेई || धरमनय विदूष्णा कौरवा गर्व माता रणसमय विगूता पांमवा तेह जीत्या ॥ २० ॥ अथप्रतिज्ञाविषेः ॥
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न यन जिकांई श्रादयुं जे निवाहे || रवि पण तस जोवा व्योम जाणी वगाहे ॥ करिगहन तिवाहे तास निस्संत आपे ॥ मलिन तनु पखाले सिंधुमां सूर खावे ॥ २१ ॥ पुरुषरयण मोटा जे गणीजे धराये ॥ जिए जिम प डिवज्यूं ते न ढांडे पराये ॥ गिरिश विष धरयो जे ते न अद्यापि नाख्यो ॥ दुर
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