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________________ श्री समयसारनाटक. ६६५ विखरोगसों; कर्मसों अबंध सिद्ध जोगसौं अबंध जिन हिंसासौं अबंध साधु ज्ञाता विषै जोगसों; इत्यादिक वस्तुके मिलापसों न बंधे जीव, बंधे एक रागादि अशुद्ध उपजोगसों ॥ ४२ ॥ अर्थः- कोई कहे बे के कर्मजाल वर्गला थकी जगत्मां जीव बंधाय बे, ते वात खोट एटले कर्म वर्गणा जीवना बंधनो हेतु नथी, एवी रीते कदाचित् मनवचन का याना योगथी पण जीव बंधातो नथी; चेतन तथा अचेतननी हिंसाथकी पण जीवने बंध यतो नथी. लक्ष पति बे, तथा छालहरूपी बे; ते पंचेंद्रियना विषयरूप विष रोग व पण बंधातो नथी. कर्म वर्गणाथी सिद्धना जीव बंधाता नथी; वली जिनेश्वर देव े तेतो त्रणे योगमां बे तोपण अबंध बे; साधुजेबे, ते अनाजोगपणे हिंसा करे बे, तोपण बंध बे; ज्ञाता विषय जोगवेढे, तो पण ते अबंध बे. ए रीते कर्म व गणा प्रमुख वस्तुना मिलापथी जीव बंधातो नथी. पण मात्र एक राग द्वेषने मोह अने जीव बंधरूप अशुद्ध उपयोगथीज जीव बंधाय बे ॥ ४२ ॥ हवे राग द्वेष ने मोहनेज दृढपणे बंधना हेतु ठरावे :बंध निदानदृष्टि करन व्यवस्था: ॥ सवैया इकतीसाः ॥ कर्मजाल वर्गनाको वास लोकाकाश माहिं, मन वच का याको निवास गति श्रनमें; चेतन अचेतनकी हिंसा वसै पुलमें, विषै जोग वरते उदेके उरजाजमें; रागादिक शुद्धता अशुद्धता है अलखकी; यहे उपादान हेतुबंध के ब ढाउमें; याहि ते विचवन प्रबंध कह्यो तिहूं काल, रांग दोष मोहनादि सम्यक् सुनाउमें.५३ :- कर्म जाल वर्गणानो वास तो लोकाकाशमांज बे, केवल कर्म वर्गणा कार थकीज जो श्रमूर्त्ति चेतनद्रव्य बंधनावने पामे, तो लोकाकाशनो बंध केम नही थाय ? तेमज मन वचन छाने कायाना योगनो वास तो चारे गतिने विषे बे, अने चारे वामां बे, त्यारे योग ते आत्माना बंधना हेतु केम थाय ? चेतननां प्राण हरणथी . हिंसा थाय बे; ते पुल बंधरूप प्राणमांज हिंसा थाय बे, एमज श्रचेतननी हिंसा पण पुलमांबे, ते श्रात्मासाथै स्पर्शती नथी, तो बंध केम थाय ? अने विषय जोग जे वरते बे, तो कर्मना उदयमां बे, अरुजी रह्या बे, अने श्रात्मा तो तेथ। निरालो बे, ते बंधा केम ? माटे राग द्वेषने मोह की जेशुद्धता के० मुग्धता याय ने परवस्तु ने पोतानी करी मानवी ते अलख पुरुषनी अशुद्धता बे. अने एज अशुद्धता बंधने धारे बे, ए माटे विचक्षण पुरुषने त्रण कालविषे प्रबंध कह्यो; केमके, तेने सम्यक् स्वजावां राग द्वेष ने मोह नथी. ॥ ४३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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