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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. हवे ज्ञाताने श्रबंध कह्यो तोपण उद्यमी थश्ने क्रिया करवी ते समजावेजेः
अथ उद्यम प्रशंसाः॥ सवैया इकतीसाः ॥- कर्मजाल जोग हिंसा जोगसों न बंधे पै त, थापि झाता उद्यमी बखान्यो जिन बैनमें; शानदृष्टि देतु विषै जोगनिसों हेतु दोज, क्रिया एक खेत यो तो बनै नांहि जैनमें; उदै बल उद्यम गहै पै फलकौं न चहे, निरदै दसा न होश हिरदेके नैनमें; थालस निरुद्यमकी नूमिका मिथ्यात माहि, जहां न संजरै जीव मोहनींद सैनमें ॥४४॥
अर्थः- जीव ते कदापि कर्मजालथी बंधाय नही,अने जोग थकी, पण बंधाय नही अने हिंसा थकी पण नबंधाय, जोगवडे बंधायतोपण जिनेश्वरनावचनथकी ज्ञाता जीवने उद्यमीज वखाण्यो बे. ज्ञानने विष दृष्टिपण आपेडे, अने विषयजोगमा प्यार पण राखे बे, एवी बे क्रिया एक खेत के एक आत्माविषे एक स्थानकविषेकरे, एवं तो जैनवासीमां बने नहीं; अने जे ज्ञानी होय ते एटबुं तो करेके जे संहनन के सं घयण प्रमुख कर्म- उदय बल , तेथी यथायोग ते क्रियाविषे उद्यमवंत थाय, श्रने तेना फलने श्छे नही, ने हृदयरूप नेत्रनेविषे निर्दय दशावंत न थाय; अने बालस निरुद्यम तो मिथ्यात्वमांज पामिये, एथी बालस ने निरुद्यमनी मिथ्यात्व नूमिका बे, जे नूमिकानेविषे जीव मोहनिला लेतो थको शयन दिशामां रहे, अने पोताना स्व रूपने संचारतो तथी.॥४४॥ हवे जे उदय माफक क्रिया कही तेथी उदय बलनी व्यवस्था कहे:
अथ उदै व्यवस्था वर्णनं:॥ दोहाः ॥- जब जाको जैसे उदै, तब सो है तिहि थान; सकति मरोरे जीव की, उदै महा बलवान ॥ ४५ ॥
अर्थः- जे कालनेविषे जेनो उदय जेवो थाय ते कालने विषे ते स्थान के ते खरू पमां जीव रहे बे; ते जीवनी शक्ति मरोडीने पोतानी शक्ति प्रगट करे, एथी कर्म उद य महा बलवान् ॥ ४५ ॥
हवे उदय बल उपर दृष्टांत थापैः - श्रथ उदै बल वर्णनं:॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसे गजराज पस्यो कर्दमके कुंडवीच उद्यम अहुटै न पैबू टै दुःख इंदसों; जैसे लोद कंटककी कोससो उरज्यो मीन, चेतन असाता लहै साता लहे संदसों; जैसे महाताप सिरवाहिसों गरास्यो नर, तकै निजकाज उठी सकै नसुबं दसों; तैसे ज्ञानवंत सब जानै न वसाईकलु, बंध्यो फिरै पूरब करम फल फंदसों.४६
अर्थः-जेम हाथी कर्दमना कुंडमां पड्यो पड़ी तेमाथी निकलवाने उद्यम अहुटै के०
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