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श्री समयसारनाटक.
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काव्यानुं नदी ने साचनेविषे दृष्टि राखवी ते अमूढ दृष्टिगुण, कोई प्राणीनो दोष कदेवो नही ते दोषाकथन गुण; चंचलता त्यागीने ज्ञानरूप चित्तने विषे स्थिरता राखी ते थिरीकरण गुणः श्रात्म स्वरूप मां प्रेम राखवो ते वबल गुण; श्रने श्रात्मस्वरूप साध
विषेा लहरी के० तरंग उठवाएं लीधुं रहे ते प्रभावना गुण, एम एक स कितना वे अंग ज्यारे जागे, अने ते आठ गुणे सहित सम्यक्त्व धारण करे, ते सम कितवंत के देवाय ने तेवाज सम किती मोक्ष पामे, ने फरीथी या संसारमां श्रावे नदी हुवे निर्जराधारी चैतन्यनुं नाटक कहे बेः- अथ चैतन्य नाटक कथनंः॥ सवैया इकतीसाः॥ - पूर्व बंध नासे सोतो संगित कला प्रकाशे, नव बंध रुंधी ताल तोरत बरि; निसंकित आदि अष्टांग संग सखा जोरी, समता थलाप चारि करे सुख नरि; निरजरा नाद गाजे ध्यान मिरदिंग वाजे, बक्यो महानंद में समाधि रीकि करिके; सत्तारंग भूमिमें मुक्त जयो तिहू काल, नाचे शुद्ध दृष्टि नट ज्ञान वांगंधरिके ३८ अर्थ :- जेम पूर्वकालने विषे उत्कृष्ट स्थिति थकी बंध करतो हतो तेवी रीते न क अनुत्कृष्ट स्थिति थकी करवो एम पूर्व बंध नासे, तेतो संगित कला श्रालापचारी प्रकाशे, ने नवा बंधने रोधवं ते रूपताल उबले बे, तालतोरे बे, निःशंकित प्रमुख जे सम कितना कह्यां, ते सहाय जोगी समता समाधि धारी तद्रूप वर बांधी ने
लाप करेबे, ही कर्मनी निर्जरा हेतु बे, एटले कर्मनाश करवारूप कार्यनुं निर्जरा कारण बे, ते ध्यानविषे एक स्वरूपनाद गाजे बे, अने “सोहं" ध्वनि बे रूप मृदंग वाजे बे, छंदी जे महानंदमय थईने वाक्यो तेतो सुखी थयो, ते जाणिये रीऊ थई, ने पोतानी श्रात्मसत्ता तेज कोई रंगभूमि बे एटले रंग मंडप थयो, तेनेविषे त्र का मां शुद्ध दृष्टिसहित ज्ञानरूप वेष स्वांग पढेरी धरीने नटरूप चैतन्य मुक्त थइने नाचे वे ॥ इतिश्री समयसार नाटकविषे बालबोधरूप निर्जराद्वार सप्तम संपूर्ण . ॥ ॥ दोहा ॥ - कही निर्जराकी कथा, शिवपथ साधनहार; अब कटु बंध प्रबंधको, कहुं प विस्तार ॥ ३० ॥
अर्थः- मोक्ष मार्गनी साधनकार जे निर्जरा तेनी कथा हती ते कही, हवे जे बंध थाना अधिकारनो अल्प विचार कहे ॥ ३ ॥
दवे बंध जे बे ते ढांडवा योग्य बे, माटे ते बंधनो विदारणहार जे समकित तेने नमस्कार करे::- बंध विदारन सम्यक्त्व वर्णनं:
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - मोह मद पाई जिन संसारी विकल कीने, याहिते श्रजा नुबाहु विरद वढ्तु है; ऐसो बंध वीर विकराल महाजाल सम, ज्ञान मंद करे चंद राहु ज्यों गढ़तु है; ताको बल जंजिबेकों घटमे प्रगट जयो, उद्धत उदार जाको
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