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________________ श्री समयसारनाटक. ५७ए वति पलकमे; जाके नाम महीमासें कुधातु कनक करै, पारस पाषान नामी जयो है खलकमें; जिनकी जनमपुरी नामके प्रनाव हम, अपनो स्वरूप लख्यो नानसो जलकमें; तेई प्रजु पारस महारसके दाता अब, दीजे मोहि साता दृग लीलाके ललकमें. ॥३॥ __ अर्थः-ज्यारे श्री पार्श्वनाथ नगवाननी कुमारावस्थाहती त्यारे कोई एक समये श्री बनारसी नगरी विपे एक तापसनी साथे अज्ञानतपश्चर्यानी निर्त्सना पूर्वक वाद थयो, ते प्रसंगे ते तापसनी धूणीमांनां लाकडांमां नाग बे एवी रीते श्री पार्श्वनाथ जगवाने कडं, ते वातने पेला तापसए गणकारी नही, तेथी ते लाकमां फोमीने ते नागने बाहेर कहाढ्यो; पण ते अधवत्यो थयो हतो तेथी तडफमवा लाग्यो, तेना अंतना समयमां श्री पार्श्वनाथ नगवाने तेने “ॐ असिआउसाय नमः " ए मंत्र संचलाव्यो ते वचन तेणे सारी रीते हृदयमा धारी लीधुं. एटलामां तेना शरीरनी शांति थई गई. तेना अंतना सारा परिणामोने लीधे ते धरणे थयो; तेनी स्त्री पद्मावती थई; ए कथा श्री पार्श्वनाथ चरित्रमा प्रसिद्ध ले. ते श्रद्जुत म हीमाने दर्शावतां बतां ग्रंथकर्ता उपमालंकारवडे पारसमणि अने श्री पार्श्वनाथना ए गुणनी सादृश्यता देखाडे: जेनां वचन हृदयनेविषे धारण करीने नाग श्रने नागणी ए बन्ने पलकमां धरणे अने पद्मावतीरूपे थयां. श्राहीं नाग अने नागणी कडेवाथी दिगंबरोनुं मत जा प. श्वेतांबरी तो एक नागनेज कदे. वली पार्श्वपाषान, खलक एटले पुनिया मां, प्रसिक , एटले पारश मणि नामना पाषाणनो स्पर्श थतांज लोखंम नामनी कु धातु सोनुं थायले. तो ए पाषाणमां एवो महीमा किहांधी उत्पन्न थयो ? तेनो उ त्तर कहेजेः- पार्श्व एवं नाम श्री पार्श्वनाथने तुल्य बे. तेना महीमा थकी एटले मात्र पार्श्व एवं नाम ने ते नामनाज महीमाथकी ते पार्श्वरूप पाषाणमां एवो गुण थयो. वली जेनी जन्म पुरीनुं नाम बनारसी नगरी बे, अने ग्रंथकर्ता कहे डे के, मारु नाम पण बनारसी हुँ पाम्यो. ते मात्र नामना प्रनावथी में मारुं आत्मस्वरूप जाणी लीधुं. ते केवी रीते जेम प्रजात समयमां सूर्य पोताना रूपने जलकमां स्वड प्रकाशे बे, तेनीपरे मारू रूप पण प्रकाशी रमु . ए पण श्री पार्श्वनाथ नगवानना महीमानो प्रताप.तेज श्रीपार्श्वनाथ नगवान महा शांत रसने देवावाला , ते हवे दृग लीलाकी ललकके० आंख मीचीने उघाडीए अर्थात् एक पलक मात्रनी सत्तामा मुजने आत्मसमाधिरूप शाता आपो. एथी निवृत्ति सुखनी सूचना करी बे ॥ ३ ॥ सिक जगवाननी स्तुति करे:॥ श्रडिल्स बंदः॥- अविनाशी अविकार,परम रसधाम है; समाधान सरवंग,सहज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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