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________________ ५० प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अनिरामहै; शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादि अनंत है; जगत शिरोमनि सिक सदा ज यवंत है ॥ ४ ॥ अर्थः- जेनोविनाश नथी, अने जेने कोई विकार लागे नही, एवो परम रस ए टले कोई केवलीगम्य जे सहजानंद उत्कृष्ट शांतरस, तेना जे धाम एटले घर बे; माटे सर्वांगने विषे सहजनी जे अनंत सुखरूप समाधि तेणेकरी जे अनिराम ए टले थति मनोझले. चौदराजलोकनी उपर विराजमान होवाथी सर्व दोषथी रहित शुकजे. सर्वज्ञता पाम्याथी बुद्ध बे. अने सर्वना ईश्वर माटे अविरोधबे, एवी अव स्थाए करी ते अनादि अनंत बे. अने चउद राजलोकना उपर विराजमान ने तेथी जगत्ना शिरोमणि ने एवा जे श्रीसिक नगवान ते सदासर्वदा जयवंत थाश्रो ॥४॥ __साधुरूप नगवाननी स्तुति करेजेः॥सवैया श्कतिसाः॥-झानके उजागर सहज सुख सागर सुगुण रतनागर वैराग रस नस्यो है; सरनकी रीत हरै मरनको नै न करै करनसों पीठ दे चरण अनुसस्यो है; धरमको मंडन नरमको विहंगन जु, परम नरम ठहै के करमसो लस्यो है; ऐसो मु निराज जुश्र लोकमें विराजमान, निरखि बनारसी नमस्कार कस्यो है॥५॥ अर्थः- जे ज्ञाननो उद्योत करनार बे. आत्मव्यतुं जे सहजसुख तेना जे समुद्र ३. अने सुगुनजे ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयीनी आकर एटले जे खाण . पांच इंजियोना विषयनेविषे जे वैराग्य ते रूप रसेकरी जे परिपूर्ण थयाडे. कोई परिषद श्रावीने प्राप्तथयाथी गृहस्थनीपरे जे शरणनी रीति राखे नही. श्रात्माने शाश्वतव्य जाणीने जेणे मरणनो जयमुकी दीधो बे. पांच इंडियोने पूठ श्रापी तेना विषयोथी विमुख थयाथकी जे चारित्रने अनुसया बे; वली जेनो आश्रय लेवाथी धर्मपदार्थ विराजमान थाय माटे धर्मना मंमन करनारा. मिथ्या मतिरूप जे जरम तेनुं विशेषेकरीने जे खंडन करनारा बे; जे परम दयावान थने कर्मोनीसाथे युक करे. ( दयावानने युडकर, संजवे नही तेम बतां का ते माटे विरोधालंकार जाणी लेवो.) एवी विशेषताने लीधे जे मुनिराज एटले रुषीश्वर जुथ लोकमां पिस्तालीश लाख मनुष्य देत्रविषे विराजमान तेने हृदय कमलथी जो ईने बनारसीदास नमस्कार करेजे. ॥५॥ हवे पांच अनुव्रत लीधा ने जेमणे एवा समकितीनी स्तुति करे. ॥सवैया तेईसाः॥- नेद विज्ञान जग्यो जिनके घट, शीतल चित्तजयो जिम चंदन; केलि करै शिव मारगमे जगमांहि जिनेश्वरके लघु नंदन; सत्य स्वरूप सदा जिन्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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