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________________ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. केप्रमाणविना नव्यलोकरूप सरोवर महा दर्षने पामेले. जे कामदेवना क्षय करनार बे, श्रने जेनुं उत्कृष्ट सहज सुखरूप धर्मने अर्थे जक्तजन स्मरण करी रह्या. तेथी तेनुं सब डरसिके सात नयरूप जे शीत बे, ते नाशी जायजे. जेनुं शरीर जलसहित मेघना जेवू नीलवर्ण जे. जेना मुकुटनेविषे सात फण बे. जेणे कम नामे असुरनुं मान नंजन कमुले. एवा जिन के श्रीपार्श्वनाथ नगवान, तेने बनारसीदास नमस्कार करे ॥१॥ फरीथी विशेषे श्री पार्श्वनाथ स्वामीनी स्तुति करेजे. ॥ सर्व लघु वरांत श्रदर युक्त बप्पय बंद. ॥ एने चित्रकाव्य पण कहेजेः-सकल करम खल दलन, कमठ सठ पवन कनक नग; धवल परम पद रमन, जगत जन अमल कमल खग; पर मत जलधर पवन, सजल घन सम तन समकर; पर अघ रज हर जलद, सकल जन नत नव जय हर; यम दलन नरक पद बय क रन, अगम अतट नव जल तरन; वर सबल मदन वन हर दहन, जय जय परम अनय करन. ॥५॥ अर्थः-सर्व कर्मरूप खलके पुष्ट वैरीने दलवा वाला बो. कमठ नामना महा मूर्ख असुर तेरूप पवन श्रागल मेरु पर्वतनी परे अमग बो. धवलके निर्मल सिक स्थानकनेविषे रमनारा बो. जगतना लोकोरूपी उज्वल कमलने विकस्वर करवाने अर्थे खगके सूर्य जेवा बो. एकांत नयवादी जे पर मत, तेरूप मेघने मटामवाने अर्थे पवनना जेवा बो. जल सहित मेघ घटाना जेवू श्याम जेनुं शरीर बे. समक रके उपशमना करनार बो. परके शत्रुरूप अघके० पाप रजने हरण करवाने मेघ जेवा बो. जेने सकल लोक नमे ने, अर्थात् त्रिजुवन पूज्य बो. जन्म मरणरूप जे नव नय तेने हरण करनार बगे. लोकोना मृत्युने दलवावाला बगे. नव्य प्राणी श्रोने नरक पदना क्षय करनार बो. अगम एटले अथाग अने अतटके अपार एवो जे संसाररूप समुह तेने तरवावाला बो. सर्व दोषोमां वरके प्रधान श्रने बलवान जे कंदपेवन, तेने बालवाने हरके रुजना नेत्रनी अग्नि जेवा हे! नगवान तमे जयवंता थायो ! वली तमे परम अजय पदना करनार बो, एटले जय नंजन बो. ॥२॥ था बप्पय बंद वडे परमेश्वरना महीमार्नु वर्णन कगुं. अने पोतानुं काव्य चातुर्य दर्शाव्युं . श्रा ग्रंथना कर्ता बनारसीदास कहे के जेना प्रसादथी परगसेन पिताने घेर मारो जन्म थयो एवो हुं श्री पार्श्वनाथ जगवाननी स्तुति करुंबु. ॥सवैया इकतीसाः॥-जिन्हके बचन जर धारत जुगल नाग, जये धरनिंदप दमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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