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श्री समयसारनाटक. नी जालथी खुलेलो रहे , कोनी पेठे ? जेम गोरखधंधो पोतानी जालथी खुली जा यडे तेम जाणवू ॥१॥ हवे ज्ञानी जीवने कर्मनुं अकर्त्तापणुं तथा निर्जरारूप ठरावे :
अथ झानीको अकर्तृत्व कथन:॥ सवैया तेईसाः ॥- जे निज पूरव कर्म उदै सुख चुंजत जोग उदास रहेंगे; जे मुखमें न विलाप करै निरवैर हिये तन ताप सहेंगे; है जिनके दृढ श्रातम ज्ञान क्रिया करिके फलकों न चहेंगे; ते सुविचछन झायक है तिनको करत्ता हम तो न कहेंगे॥२॥
अर्थः- जे जीव पोताना पूर्व संचित शुन कर्मना उदय वडे सुख नोगवतो थको पण जोगथी उदास रहे बे, अने जे जीवने असाता वेदनीयना उदयथी दुःख उपजे तो पण विलाप करेनही, अरतिनो वित्नाग करे नही, अंतरमां कोई चिंता नही राखे; अने शरीरनो संताप सहन करे, वली जेनीपासे आत्मज्ञान , तेतो क्रिया करीने फ लने श्छे नही, तेज उत्कृष्ट विचक्षण ज्ञानी कहेवाय बे, श्रने तेने कर्म करता थका कर्मना कर्ता एम तो अमे कही शकशुं नही ॥१२॥
हवे एवा ज्ञानीनी व्यवस्था कहे . ज्ञाता वर्णनं:॥ सवैया इकतीसाः॥- जिनकी सुदृष्टिमें अनिष्ट इष्ट दोउ सम, जिनको श्राचार सुविचार सुन ध्यान है; स्वारथको त्यागी जे लहेंगे परमारथको, जिनके वनिजमें नफा न है न ज्यान है; जिनकी समुऊमें शरीर ऐसो मानीयतु, धानकोसो बीलक कृपान कोसो म्यान है; पारखी पदारथके साखी चम नारथके, तेई साधु तिनहीको ज थारथ हान है. ॥ २३॥
अर्थः- जे ज्ञातानी सुदृष्टि एवी के, जेनेविषे इष्ट वस्तु तथा अनिष्ट वस्तु बेज बराबर , अने जेनो श्राचार एवो बे के जे जला विचारथी शुज ध्यानमांज रहे, अ ने विषय सुख प्रमुख स्वार्थने त्यागीने जे अध्यात्मरूप परमार्थ तेनेविषे लागी रहे, वली जेनां वचन एवां बे के, जेमा नफो नथी तेम टोटो पण नथी, एटले कोईने सु सीख किंवा कुसीख देता नथी; मौन वृत्तिज रहे. वली जेनी समऊ एवी होय के श रीरने धाननी बील के तुस जेवू श्रने कृपान के तरवार तेना म्यान जेवं माने , मतलब के श्रात्माने शरीरथी जुदो जाणे . वली जे जेवो पदार्थ होय तेवी तेनी परीक्षा करे ,अने जेम नय छानविना पांच दर्शनमांजे चमनुं नारथ चाली रह्युबे,तेनोसादी पूबवानुं थानक , तेहिज साधु कहेवाय , अने तेने यथार्थ ज्ञानी कहिये. ॥२३॥ हवे समकितनुं साहसपणुं वर्णन करेजेः- अथ सम्यक्वंतको साहसकथनं:॥ सवैया इकतीसाः ॥- जमकोसो जाता फुःखदाता है असाता कर्म, ताके उदै
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