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________________ ६५७ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. रमेसरकी दौहि है; विषेसों विमुख होश अनुनो दशा आरोहि, मोख सुख ढोहि ऐसी तोहि मति सोहि है ॥ १७ ॥ अर्थः- ज्यां सुधी ज्ञाननो उद्योत हे त्यांसुधी बंध थतो नथी अने ज्यारे मिथ्या त्वदशावंत , त्यारे तो नाना प्रकारनो बंध थाय बे, कोई एकांतवादीयें एवो ज्ञान माहात्म्यनो नेद सांजलीने एवं कह्यु, के तुं विषय नोगववा लाग्यो बे, अने मन, वच न, कायाना योग थकी उद्यमनी रीति जे क्रिया, तेने तें बोमी दीधी , तेने कहेले के हे सत् पुरुष, सांजल तुं जे कहे , के हुं समकितवंत बु, पण ए एकांतमत जे ले ते परमेश्वर परमात्मानी दोही के प्रोह करनारी , माटे तुं विषयथी विमुख थईने अनुजव दशामा गुण श्रेणि धरी थारोहण करी अने मोदना सुखने ढोही के जो, तो एवीज बुझि थकी शोने दे. ॥ १७ ॥ हवे ज्ञान, तथा विषय विमुखतानुं सहचारिपणुं बतावेजेः अथ ज्ञान वैराग्य युगपद वर्णनं:• ॥ चौपाई॥- ज्ञानकला जिनके घट जागी; ते जगमांहि सहज वैरागी; ज्ञानी मगन विषसुखमांही; यह विपरीत संनवै नांही.॥१७॥ दोहाः।-ज्ञान सहित वैराग्य बल, शिव साधै समकाल; ज्यों लोचन न्यारे रहैं, निरखै दोऊ नाल. ॥ १५ ॥ __ अर्थः- जेना घटनेविषे ज्ञानरूपी कला जागी डे तेतो जगत्ने विष सहेजे वैरागी रहे ले. ज्ञानी थईने विषयसुखमां मग्न होय ए विपरीत वात संनवती नथी॥ १७ ॥ वली छाननी संगति ने वैरागनी संगति ए बंने चीज समकाल मलीने मोदने साघे; जेम बे आंखो जुदी रही, पण नाल के साथे बेल नेत्र पदार्थने जुए. ॥ १५ ॥ हवे मूर्खने कर्मनुं कर्त्तापणुं थने ज्ञानीने निर्जरानुं कर्त्तापणुं ए बेनुं स्वरूप कहे. अथ मूढ कर्ता कर्मको यह कथनं: ॥चौपाई॥- मूढ कर्मको कर्त्ता हो; फलअनिलाष धरै फल जोवैः कानी क्रिया करै फल सूनी; लगै न लेप निर्जरानी ॥ २० ॥ दोहाः- बंधे कर्मसों मूढज्यो, पाट कीट तन पेम; खुलै कर्मसों समकिती, गोरख धंधा जेम. ॥१॥ अर्थः- मूढ २ ते कर्मनो कर्ता बने बे, केमके ते क्रियाना फलनो अभिलाष धरे बे, अने फलने जोई रहेजे; ने जे झानी होय ते क्रिया तो करें पण फल शुन्य करे, तेथी हानीने कर्मनो लेप लागतो नथी; एथी बमणी निर्जरा थाय बे. ॥ २० ॥ वली जे मूढ जे ते कर्मनेविषे बंधार रहे, जेम रेशिमनो किमो पोताना शरीर ना प्रेमवडे पोतानी लाल थकी पोतेज बंधाय बे, अने जे समकिती होय तेतो कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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