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________________ ६५६ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. निशिवासर के रात दिवस परिग्रहनी नीडमां रहे, तोपण पूर्व कर्मना नोगनी नि र्जरा करे, अने नवां कर्मनुं बंधन करे नही, अने जगत्ना सुखने जाचे नही. वली शरीरने जोईने राचे नही. ॥११॥ हवे परिग्रहने विषे रेहता ज्ञाताने उठेग रहितपणुं होय जे ते दृष्टांत वडे दृढ क रावे बेः- श्रथ झाता अनुछेग कथन: ॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसे काहु देसको वसैया बलवंत नर, जंगलमें जाई मधु उत्ताको गहतु है; वाकों लपटाय चहु और मधुमक्षिका पे कंबलीकी उँटसों अडंकित रहतु है; तैसे समकिती शिव सत्ताको सरूप साधे उदेकी उपाधिकों समाधिसी कहतु है: पहिरे सहज को सनाह मनमें उबाह, ठाने सुखराह उदवेग न लहतु है. ॥१॥ अर्थः- जेम कोश्क देशनो रेहेवासी नील वगेरे बलवंत नर जंगलमां जश्ने मध पुडाने ग्रहण करे , ते वखत ते पुरुषने चारे तरफ मधु मदिका के मध माखील पटाई जाय , पण ते पुरुषना शरीर पर कामली होय, तेथी अडंकित के डंखवि ना अडंख रहे; तेमज समकिती जीव शिव के परमात्मानी सत्ता के सनूतपणुं तेनुं स्वरूप जे एक विज्ञानघनपणुं तेने साधे , अने कर्म उदयनी जे आत्माने जपा धि लागी रही, तेने ते समाधि करी जाणे . सहज गुण जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप जे सनाह के बखतर ते पहेरी राखेने, अने ए रीते जे कर्मनिर्जरा तेनो उग ह मनमा धारण करे एवा अनंत सुखना राह के मार्गने विषे रहेतो थको जग द शाने पामतो नथी. ॥ १५ ॥ हवे ए रीतमां ज्ञातानुं अबंधकपणुं बतावेजेः- अथ ज्ञाता श्रबंध कथनं:॥ दोहराः॥ ज्ञानी झान मगन रहे, रागादिक मल खोश् चित उदास करनी करे, करम बंध नहि होश.॥ १३ ॥ मोद महातम मल हरे, धरे सुमति परगास; मुगति पंथ परगट करे, दीपक ज्ञान विलास. ॥ २४ ॥ अर्थः- ज्ञानी पुरुष तो ज्ञानमा मग्न रहेने, अने रमेडे, श्रने राग-द्वेष-मोहरूपी जे मल बे, तेने खो दिए अने जे क्रिया करे ते पण उदासीनरूप करेजे, माटे एवा ज्ञानीने कर्म बंध थतो नथी. ॥ १३ ॥ वली मोहरूपी महातम के घोर अंध काररूप जे मल तेने हरे, अने सुमतिना प्रकाशनार दीपकने धरे, ए रीते मुक्ति पं थने प्रगट करी बतावे, एवोज ज्ञाननो विलास ते दीपकरूप जाणवो. ॥ १४ ॥ हवे ज्ञानदीपकनुं स्वरूप कही देखाडेजेः-- अथ शान दीपक वर्णन:॥सवैया इकतीसाः॥-जामें धूमको न लेस बातको न परवेस, करम पतंगनिका नाश करे पलमें; दसाको न नोग न सनेहको संयोग जामें, मोह अंधकारको विजोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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