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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो.
अर्थः- जेना हियाने विषे सत्य सूर्यनो उद्योत थई इह्योबे, अने सत्य सूर्यना मति रूप किर्ण फेली रह्याबे, तेथी मिथ्यात्व रूप अंधकार ते नाश पाम्यो. वली जे जीवनी सुदृष्टिमां विषमतानो परिचय नथी, एटले समतासाथे प्रीति बंधाणी बे ने ममतासा ये तथा मोहसाथे लष्ट पुष्ट के० चित्तविनानी प्रीति राखेडे, ने जेना कटाने विषे ए टले थोडा विलोकनमां सहज वनावे मोक्षमार्ग सिद्ध थायडे. साधन के० मनोयोगा दिक ऋण योगनो निरोध एटले निग्रह कस्यो ने जेना शरीरने कष्ट नथी, एवा ज्ञानधारीने जे कर्म लदेर आवेढे तेने गणतीमां समाधि जावज जाणे; जो कदी गति कर्मना उदयवडे डोलेबे तोपण ते जोगासनधारीबे ने जो बोले तोपण मष्ट के० मौनत्रति बे ॥ ६॥
हवे ज्ञानीने परवस्तुनो त्याग को अने विशेषपणे तेनोज त्याग वखाणेढेः॥ श्रथ परवस्तुको त्याग ताको विशेष वर्णनंः- ॥
॥ सवैया इकतीसाः॥ - श्रातम सुनाउ परजानकी न सुद्धि ताकों, जाको मन ग मन परिग्रह में रह्यो है; ऐसो अविवेकको निधान परिग्रह राग, ताको त्याग इहांलों समुच्चैरूप को है; ब निज परे म डूरि करिबेके काजु बहुरो सुगुरु उपदेशको मह्यो है; परिग्रह अरु परिग्रहको विशेष अंग, कहिबेको उद्यम उदीरि लह लह्यो है.
अर्थः- जेनुं मन परिग्रहविषे मग्न थई रधुं बे, ते जीवने पोताना तथा पारका स्वजावनी शुद्धता यती नथी. परिग्रहनो राग तेतो विवेकनुं निधान कयुं बे, जे प रिग्रहना रागने विषे पोताना ने पारका खजावनी शुद्धता नथी, ते परिग्रह रागने त्याग हीं सुधी सामान्य मात्र कह्यो. दवे निजस्वरूपनो भ्रम ने पर स्वरूपनो चम तेने डूर करवाना कार्यने घणा प्रकारे सद्गुरु उपदेश करवाने जंगवंत थया बे. दवे इहां परिग्रह तथा ते परिग्रहनुं विशेष अंग केदेवाने सद्गुरु जे बे ते उद्यम उदीर या करीने लह लह्यो के० सचेत थया बे. ॥ ७ ॥
हवे सामान्यरूप परिग्रहनो राग ने विशेषरूप परिग्रनो राग तेनो विवरो कहे a:- अथ सामान्य विशेष कथनंः
॥ दोहा ॥ - त्याग जोग परवस्तु सब, यह सामान्य विचार; विविध वस्तु नाना विरति, यह विशेष विस्तार ॥ ८ ॥
अर्थः- जेटली परवस्तु बे तेटली बधी त्याग जोग बे. एतो सामान्यपणे परिग्रह ना त्यागनो विचार जाणीये; अने ते परवस्तु जात जातनी वे अने तेना उपर विचा रपण जातजातनो बे; एने विशेषपणे परिग्रह त्यागनो विस्तार जाणवो. ॥ ८ ॥
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