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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो.
रथिति जोइके; जाने निज मरम मरन तब सूकै झूठ, बूकै जब और अवताररूप होइ के; वाहु अवतारकी दशामें फिरि यहे पेच, याहि जांति जूठो जग देख्यो हम ढोके ॥ ए५॥
अर्थः- ज्यारे जीव सयन दशामां सूतो होय बे, त्यारे स्वप्नने सत्य करी माने बे. अने तेज स्वप्न रूपने ज्यारे निद्रा मूकी जागीने जुए बे, त्यारे फूलूं जाणे बे, जागी ने क के श्री मारुं शरीर तो यहीं बे, या सोंज के० सामग्री सर्व मारी बे; ने ज्यारे पोतानी मरण स्थितिनो विचार करे बे, त्यारे तो वर्त्तमान शरीर तथा सामग्री सर्वने झूठी माने बे, अने ज्यारे पोताना मर्मनी वात जाणे एटले पोताना स्वरूपनी वातने जाणे, त्यारे तो मरणने पण झूलूं जाणे; एमज वली बीजो अवतार ले त्यारे बीजा रूपे ईने बीजी वात जाणे; फरी तेज अवतारमां सूता-जागता, जूता- साचानो पेचया गलीज रीते लाग्यो रहे. ए रीते वारे वारे अवतार लेवाने वली सामग्रीने पोतानी स मजवी ने वली मरखुं; ए रीते सर्व संसारने ढोई के० देखीने श्रमे सर्व संसारने जूठोज जायो. ॥ ५ ॥
हवे ज्ञाता केवी क्रिया करे ते समजावे बे:- अथ ज्ञाताकी क्रिया कथनंः॥ सवैया इकतीसाः॥ - पंमित विवेक लहि एकताकी टेक गहि, इंदज अवस्थाकी अनेकता हरतु है; मति श्रुत अवधि इत्यादि विकलप मेटी, निरविकलप ज्ञान मन में धरतु है; इंद्रियजनित सुख दुःखसों विमुख व्हैके, परमकी रूप व्है करम निर्जरतु है; सहज समाधि साधि त्यागी परकी उपाधि, श्रातम आराधि परमातम करतु है . ६
अर्थ :- जे पंक्ति जन होय ते विवेकनो नेद एटले विज्ञान लहीने पोतानी एक तानी टेक राखीने प्रथमनी द्वंद्वावस्था जे भ्रम अवस्थामां अनेकता हती तेने हरे बे ने मति, श्रुत, अवधि इत्यादि ज्ञानस्वरूपना विकल्पने मटामीने निर्विकल्प ज्ञान तेने मनमां धरेवे ने इंद्रियजनित जे सुख दुःख तेश्री विमुख थई परमात्मारूप
ईने कर्मनी निर्जरा करे बे, एटले निर्जरा थाय बे. तेथी पोतानी सहज समाधिसा धिने पर जे कर्म पुलादिकनी उपाधि जे राग द्वेषादिक, तेनो त्याग करीने आत्मा ने राधी परमात्माप करे. ॥ ए६ ॥
हवे जे ज्ञान समुद्र परमात्मानी प्राप्ति थाय बे, ते ज्ञाननी प्रशंसा करे:अथ ज्ञान समुद्रवर्णनंः
॥ सवैया इकतीसाः॥ - जाके उरअंतर निरंतर अनंत दर्व, जाव जासि रहे पें सुना उन टरतु है; निर्मलसों निर्मल सुजीवन प्रगट जाके, घटमें घट रस कौतुक करतु हैं; जानै मति श्रुतधि मनपर्ये केवल सु, पंचधा तरंगनि उमंग उबरतु है; सो है ज्ञानज्रदधि उदार महिमा अपार, निराधार एकमें अनेकता धरतु है ॥ ७ ॥
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