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श्री समयसारनाटक.
६४ए अने ए दशानेविषे जे मूढ जन होय, ते त्रणे काल मग्न थको धावे बे, एटले ब्रम जालमां दोडे, पण पोतानुं रूप पामतो नथी. ॥१॥
हवे जीवनी जागृतदशानुं वर्णन करेजेः- श्रथ जागृतदशा वर्णनं:॥ सवैया इकतीसाः॥-चित्र सारी न्यारी परजंक न्यारो सेज न्यारी, चादर जी न्यारी शहां फुली मेरी थपना; थतीत अवस्था सैन निनावही कोउ पैन, विद्यमान प लक न यामें अब बपना; श्वास औ सुपन दोउ निमाकी अलंग ब्रऊ, सूफै सब अंग लखि थातम दरपना; त्यागी नयो चेतन अचेतनता नाव त्यागी, नाले दृष्टि खोलि के संजाले रूप अपना. ॥ ए॥ ___ अर्थः- श्रात्मज्ञान पाम्याथकी कायारूप चित्रसारी जुदी जुए, श्रने कर्मरूप पलं गने पण न्यारो देखे; मायारूप सेज पण जुदी जुए, कल्पनारूप चादरने न्यारी जुए, मतलबके ए ठेकाणे मारी स्थापना जुठी जे एम समजे. अतीत अवस्थानेविषे एटले सयनदशामां निखा लेनार पण कोई बीजा रूपे हुंज ९, विद्यमान कालमां ते अवस्था नथी, हवे पलकमात्र पण आ अवस्थामां मारो अनाव थनार नथी. श्वास अने स्वप्न ए बे निखानी अलंगना संयोगे बूके, अने थात्मारूप धारिसामां आत्मा मुंज सर्व अंग सूफे, एवी रीते अचेतनतारूप निखानो त्याग करीने चेतन त्यागी थयो, त्यारे पोतानी दृष्टि खोलीने जूए, श्रने पोतानुं रूप संन्नाले. ॥ ए॥
वली सद्गुरु शिदानां वचन कहेजेः- अथ पुनः सद्गुरु शिक्षा कथन:
॥ दोहाः ॥- इहि विधि जे जागै पुरुष, ते शिवरूप सदीव; जे सोवहि संसारमें, ते जगवासी जीव ॥ ए३॥
अर्थः- ए रीते जे पुरुष जागे बे, तेतो सर्व कालनेविषे शिवरूप के मोदरूप जा णवा. अने जेटला संसारनेविषे सूता बे, तेटला तो जगत्वासी जीव समजवा.॥३॥ हवे मोक्षपद उपादेयरूप कहीने स्तुति करेः-श्रथ श्रात्मजव्य स्तुतिकथनं:
॥ दोहाः ॥- जो पद नौपद जय हरै, सोपद सोउ अनुप; जिदि पद परसत और पद, लगै थापदारूप ॥ ए४ ॥
अर्थः- जे पद के जे स्थानक जवस्थानकनो नय हरे , तेनेज पद कहे, तथा अनुप स्थानक कहेवं, अने जे पदनो स्पर्श थतांज अन्य पद जे कर्म पद बे, ते श्रा पदारूप लागे . ॥ ए४ ॥
हवे नव जे संसार पद तेनो नय बतावे बे:-अथ संसार वर्णन:॥ सवैया श्कतीसाः ॥- जब जीव सोवै तब समुफ सुपन सत्य, वदि मुग लागे जब जागै नींद खोश्के; जागे कहै यह मेरो तन यह मेरी सोज, ताहू मुठ मानतम
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