________________
६धन
प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. __ हवे जेने कर्मसत्ता तथा श्रात्मसत्तानी जिन्नता नासती नथी, तेने महामूढ कहि ये. तेनुं विवेचन करेजेः- श्रथ महामूढ व्यवस्थाकथनः
॥ सवैया इकतीसाः॥- जगवासी जीवनिसों गुरु उपदेश कहै, तुम्हे श्हां सोबत अनंत काल बीते हैं; जागो व्है सुचेत चित समता समेत सुनो, केवल वचन जामें अदर सजीते हैं; थाउ मेरे निकट बताउं में तुमारे गुन, परम सुरस नरे करमसों रीते हैं; ऐसे बैन कहै गुरु तन ते न धरे उर, मित्रकेसे पुत्र किधो चित्रकेसे चीते हैं.
अर्थः- सर्व जगवासी जीवना हित वात्सल्यने अर्थे गुरु एवो उपदेश करे के,अहो! जव्य प्राणी जीव! तमे था जगत्मां मोहनियाने विषे सूता रह्या थकाज अनादि अ नंतकाल तमोने वीत्यो , माटे हवे तो चित्तमां सचेत थईने जागो; श्रने समता स हित थका केवलीनां वचन सांजलो, जे केवलीनां वचनमां श्रदर रस के इंजियना विषय रस तेने जीतेला बे; अने तमे मारी पासे श्रावो तो तमारा गुण बताएँ; ते गुण केवा , परम एटले उत्कृष्ट सुरसे करीनरेला बे; अने कर्म थकी रीते के न्यारा बे; एवां वचन गुरु कहे ते जे प्राणी हैयामां धरता नथी ते मित्रना पुत्र जेवाडे, के मके मित्रना पुत्रवडे पोतानुं घर उघा रेहेतुं नथी. श्रने तेने शीखामण शी देवी? अने चित्रामण जेवा बे, कारण के चित्रामण थकी कांई सत्य क्रिया थती नथी. ॥ नए ॥
॥ दोहाः।- एते पर बहुरो सुगुरु, बोलै बचन रसाल; सेन दशा जागृत दशा, कहै उदूंकी चाल. ॥ ए ॥
अर्थः- ए प्रमाणे सरु ले ते फरी सरस वचन बोले , के जीवने एक सयनद शा ने बीजी जागृतदशा एवी बे दशा ने तेनी चाल शांजलो.॥ ए
हवे सैन दशानुं वर्णन करेजेः- श्रथ शयन दशा वर्णनं:- ॥ सवैया इकतीसाः ॥- काया चित्र सारीमें करम परजंक नारी, मायाकी संवारी सेज चादर कलपना; सैन करै चेतन अचेतनता नींद लिए, मोहकी मरोर यहै लोच नको ढपना; उदै बलजोर यदे श्वासको सबद घोर, विषे सुख कारजकी दोर यदे सपना; ऐसी मुढ दसामें मगन रहै तिह काल, धावै नमजालमें न पावै रूप अपना.
अर्थः- कायारूप चित्रशाली बे, तेमां कर्मरूप पर्यंक बे, तेजपर मायानी सेज सं वारी , कल्पना के मननी विकल्पनारूप चादर बे, अचेतनानी ऊंघ लईने एवी सामग्रीमा चेतन शयन करी रह्यो , मोहनी मरोम तेणे करीने लोचन ढंकाया डे उदय बल जोर जे बे, ते श्वासनो घोर शब्द , अने विषय सुख कार्यनी दोड एटले करणी करवी ते स्वप्नावस्था बे, अने एनुंज नाम मूढदशा तथा शयन दशा कहिये.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org