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________________ ६३४ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. क्रियामा उपयोग रहे त्यांसुधी श्रात्मानी स्थिरता थाय नहीं, अने श्रात्मानो शुद्ध अनुजव होय नहीं, ए उपरथी ए पुण्य पापनी बेउ क्रिया ले ते मोक्षमार्गनी कत रणी समान बे; बंधनी करनार एथी बेन क्रियामा एक पण नली नथी. ज्या मु क्तिमार्गनो बाधक विचारे त्यां बेउ क्रिया निषिक कीधी डे ॥ ४ ॥ हवे मात्र शान मोदनो मार्ग बे ते कहे :- अथ शान मोक्ष मार्ग यह कथनः ॥सवैया श्कतीसाः ॥- मुकतिके साधककों बाधक करम सब, श्रातमा थना दिको करममांहि लुक्यो है; एते परि कहै जो कि पाप बुरो पुण्य जलो, सोश महा मूढ मोबमारगसों चुक्यो है; सम्यक् सुजाउ लिये हियेमें प्रगट्यो शान, उरध उमंगि चल्यो काढूपे न रुक्योहै; थारसीसो उज्वल बनारसी कहत थापु, कारन सरूप हैके कारजकों दुक्यो है ॥ ४ ॥ अर्थः- जे श्रात्मा मुक्तिनो साधक बे, तेने सर्व कर्म बाधक बे; एथीज अनादि कालनो आत्मा कर्ममा लुक्यो एटले दबाई रह्यो बे; एम उतां पण जो कोई एबुं क हेके, पाप कर्म नगरुं बे, ने पुण्य कर्म सारु बे, तेने महा मूढ जाणवो; ने ते मोद मार्गथी चुक्यो , एम जाणवू. एवामां कोईने नव्यत्व परिपाक थकी सम्यक् स्वना वनी प्राप्ति थ तेवारे हीयामां ज्ञान प्रगट्युं तो ते उर्ध्व दशा तरफ उमंगे करीने चाट्यो, पण कोई कर्मथी रोकायो रह्यो नही. ते श्रारीसानी पठे उज्वल थईने निज ज्ञानोपयोगीपणे कारण स्वरूपी थईने पोताना मुक्तिरूप कार्यने पोतेज दुके , एवं बनारसी दास कहे ॥४ ॥ हवे झाननो तथा कर्मनो विवरो बतावेजेः- अथ ज्ञान तथा कर्म विवरन: ॥ सवैया इकतीसाः ॥- जोलों श्रष्ट कर्मको विनास नाही सरबथा, तोलों अंत रातमामें धारा दोई वरनी; एक ज्ञानधारा एक शुनाशुज कर्मधारा, मुहकी प्रकृति न्यारी न्यारी न्यारीधरनी; ग्यान धारा मोठरूप मोडकी करन हार, दोषकी हरन हार नौ समुछ तरनी; इतनो विशेष जु करमधारा बंधरूप, पराधीन सकति विवि ध बंध करनी. ॥४॥ अर्थः- ज्यां सुधी श्राप कर्मनो सर्वथा विनाश थतो नथी त्यांसुधी मुक्ति न होय अने त्यांसुधी अंतरात्मा थकी बेधारा वडे; तेमां एक झाननी धारा ने बीजी शु नाशुल कर्मनी धारा. ए बनेनी प्रकृति जुदी जुदी , अने धरनी के क्षेत्र ते पण जुएं जुडं जे. एमां एटलुं विशेष डे के जे कर्मधारा ते बंधरूप जे; अने जमपणाने लीधे एनी शक्ति पराधीनरूप अने प्रकृतिबंध, स्थितिबंध तथा रसबंध एवा नात ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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