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________________ ६३३ श्री समयसारनाटक. अर्थः- चिन्मूर्ति के चिदानंद ने ते तो सदा मोद खरूप में, अने करतूती के क्रिया तेतो सदा बंधमय. यावत् काल के० जेटला काल सुधी चेतन ज्यां वसे ता वत्काल के तेटला काल सुधी तेज रसरीत ग्रहण कीधी बे, एटले तेज रसमां र हे; एटले ज्यांसुधी आत्मानो अनुभव रहे त्यां सुधी शुज क्रिया करतां बतां शि वपद दशा निवही एटले मोद स्वरूपमा रहे, अप्रमतता कहेवाय; अने पोतार्नु स्वरूप मुलीने अंध थयो थको ज्यारे करणीनोज रस ठरावे त्यारे तो बंधनाज कष्ट रोग फेलावे ॥४४॥ हवे मोदप्राप्तितुं कारण कहेजेः-अथ मोद मार्ग निरूपणं:॥ सोरगः ॥-अंतर् दृष्टि लखाउ, अरु सरूपको श्राचरण; ए परमातमनाउ, शिवकारन एई सदा ॥४५॥ अर्थः- बाह्य दृष्टि मंडीने अंतर्दृष्टि श्रापीने श्रलदनो जापकरवो, अने तेना स्वरूपनुं श्राचरण करवू, एटले झान, दर्शन, चारित्रने याचरिये, तेथकी परमात्म नावसिक थाय; सदाकालनेविषे एज मोदनुं कारण वे ॥ ४५ ॥ . हवे बाह्य दृष्टिवमें बंध पति थाय ते कहे बे:-अथ बंध मार्ग निरूपणं: ॥ सोरगः ॥-करम शुनाशुन दोश, पुजल पिंम विनाव मल; इनसों मुगति न हो, नांही केवल पाए ॥४६॥ अर्थः- शुजकर्म ते पुण्य ने अशुल कर्म ते पाप ए बेन कर्मडे, पुजलना पिंड , अने विन्नाव जे राग केषादिक मलरूप डे ए बेउने विषे दृष्टि रहेवाथी मुक्ति थाय नहीं, अने केवलकाननुं पद पामिये नहीं ॥४६॥ _____ए वात उपर शिष्य प्रश्न करे , ने तेनो उत्तर गुरु दिये : अथ शिष्य प्रश्न गुरु उत्तर कथनः॥ सवैया श्कतीसाः ॥-कोउ शिष्य कहै खामी अशुन क्रिया शुरू, शुन कि या शुद्ध तुम ऐसी क्यों न बरनी ?; गुरु कहै जबलों क्रियाको परिणाम रहै, तबलों चपल उपयोग योग धरनी; थिरता न आवै तोलों शुद्ध अनुनो न होश, याते दोन क्रिया मोष पंथकी कतरनी; बंधकी करैया दोऊ मुहमें न नली कोऊ, बाधक विचा रमें निषिद्ध कीनी करनी ॥४७॥ __ अर्थः- कोई शिष्य पूजे जे के हे स्वामी ! तमे एवं वर्णन केम करता नथी के श्र शुन क्रिया जे हिंसादिक ते अशुकडे अने शुज किया जे दया दानादिक ते श कडे? त्यारे गुरु उत्तर श्रापेले के श्रदो शिष्य! ज्यांसुधी क्रियाना परिणाम रहे जे त्यां सुधी उपयोगनी धरनी के० देत्री एटले उपयोगवंत श्रात्मा चंचल रहे . ज्यांसुधी ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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