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________________ ६३२ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. नां कारण कर्म . अथवा पापना कारण असंयम कषाय श्रने विषय जोग जे. ए बेजमां कोई शुनरूप कार्य बे, अने कोई अशुनरूप कार्य बे; पण वस्तुनुं मूल विचा रतां तो बेजए कर्म रोग बे; एटले बेन प्रकारनो कर्म रोग ; एवी बंधनी पति के एक डंमी ते वीतराग देवे वखाणी; पण थात्मिक धर्ममा एटले यात्मानो खन्नाव जो तां कर्म किया त्यागवा योग्य बे; एवा पापपुण्यने हेय कहेनार, श्रने नवजल ने तर नार, राग शेषने हरनार तथा महा मोदनो करनार एक शुक उपयोग उपदेश .॥२॥ हवे अर्धा सवैयामां शिष्य प्रश्न करे, ने अर्धा सवैयामां गुरु तेनो उतर वाले बेः- अथ शिष्य प्रश्न गुरु उत्तर कथन:. ॥सवैया इकतीसाः॥-शिष्य कहै स्वामी तुम करनी शुज अशुज, कीनी है नि षिक मेरे संसो मनमांहि है; मोषके सधैया ज्ञाता देसविरती मुनीस, तिन्हकी श्र वस्था तो निरावलंब नांहि है; कहै गुरु करमको न्यास अनुनौ श्रन्यास ऐसो अव लंब उन्हहीको उनमांहि है; निरुपाधि श्रातम समाधि सो शिवरूप, और दौर धूप पुदगल परबांहि है. ॥४३॥ . अर्थः- शिष्य पूजे हे खामी, तमे तो मोद मार्गमा शुनने अशुन करणी बेचनो निषेध कीधो, तेनो मारा मनमां संदेह पडेले; केमके मोक्षमार्गना साधक ज्ञाता देश विरती पंचम गुण स्थान वर्ति थया श्रने मुनीश के षष्ट सप्तम गुणस्थानवर्ति सर्व विरती थया, तेमनी अवस्था तो निरालंबन नथी, एटलेपोतपोतानी शुक्रियाना था लंबनने लेईने देश विरती सर्व विरती कहेवायडे, त्यारे करणी निषिद्ध केम थई ? हवे गुरु कहेजेः- जेवो अदरनो न्यास मांड्यो तेवं श्रुत ज्ञाननु थालंबन होय तेम शुन कर्मनो न्यास तेतो जोवामां पण ते अनुजवनोज श्रन्यास, ते अनुनव श्र ज्यासरूप थालंबन ते तो ज्ञातानुं ज्ञाता पासेज बे, अने तेमां निरुपाधि के० राग वेष कषाय श्छादिकविना श्रात्मानी जे समाधी, एटले जे पर रूपने विषे निरुपयो गीपणे रहेई तेज शिवरूप, के. मोदरूपः श्रने जे दोरधूप के खेद संताप जे ते तो पुजलनी परिगही के० गया ॥४३॥ ___ हवे एज शुन क्रियाविषे बंध अने एज शुन क्रियाविषे मोद ए बेउ खरूप कही बतावेजेः--अथ बंध मोद खरूप कथन: ॥ सवैया तेईसाः ॥-मोडसरूप सदा चिनमरति, बंधमई करतूति कही हैः जा वतकाल वसै जह चेतन, तावत सो रसरीति गही है; आतमको अनुनौ जबलों त बलों शिव रूप दसा निवही है; अंध जयो करनी जब गनत, बंधविथा तब फेलि रही है ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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