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श्री समयसारनाटक.
६३१ जे, तेनो स्वादतो कटुक होय जे. ने पुण्यना उदयवडे शाता उपजे , तेनो मिष्ट स्वाद होय बे. एटले पाप ने पुण्य ए बेजने विषे रसन्नेद थयो; वली पापकर्म क्लेश रूप , तोत्र कषाय रूप ; अने पुण्य कर्म विशुफ रूप . मंद कषायरूप में; ए बंने कर्मनो निन्न निन्न खनाव थयो, ते एज उपरथी ए बंने कर्मनो नेद वखाणीये श्ये; अने पापश्री कुगति के नर्क गति तिर्यंच गति, थाय बे, अने पुण्यवडे मनुष्यगति, देवगति एवी सुगति थाय ; ए रीते पाप पुण्यरूप कर्मने विष फलनो नेद प्रत्यक्ष प्रमाणथी ॥४॥
हवे शिष्यना प्रश्ननो गुरु उत्तर करे :-अथ गुरु उत्तर वचन यथाः
॥सवैया श्कतीसाः।- पाप बंध पुन्य बंध फुहमें मुगति नांहि, कटक मधुर खाद पुग्गलको पेखिये; संकिलेस विशुद्धि सहज दोन कर्म चालि, कुगति सुगति जग जालमें विशेखिये; कारनादि नेद तोहि सूफत मिथ्यातमांहि, ऐसो बैत नाव झान दृष्टिमें न लेखिये; दोउ महा अंधकूय दोज कर्म बंध रूप, उहू को बिनास मोष मारगमें देखिये. ॥४१॥
अर्थः- पापनो पण बंध थाय ने पुण्यनो पण बंध थायबे ने ज्यां बंध होय त्यां मुक्ति न दोय, एटले बेथी मुक्ति नही ते माटे बेउ समान बे; अने जे कटुक र समां पाप डे ने मधुर रसमां पुण्य जे ए बेज रस पुद्गलना बे तेथी पापने पुण्य स मानज . वली जे संक्वेश वनावने लीधे पाप ने, ने विशुद्ध खन्नावथी पुण्य बे; पण ए बेज खन्नाव जे ते कर्मनी चाल जे. अने कुगति तथा सुगति ते पाप पुण्यनां फल , ते नेदवडे जगत् जालनी विशेषता बे, तेथी पाप पुण्य समानज बे. अरे! शिष्य ! तने जे पाप पुण्यना कारणादि नेद तेणे करीने पाप पुण्यनो बैत नाव के विविध नाव सूजे , ते तो मिथ्यामतिमां सूजे जे; पण ज्ञान दृष्टि करी जोतां तो ए तनाव देखाशे नही. ए बेनेविषे आत्मानुं अवलोकन नथी, तेथी ए बेत महा अंधकूप , अने ए बेड कर्म बे; ते बंधरूप डे अने मोदमार्गने विषे ए बेउनो वि नाश देखीये बीए तेथी ए बेज समान ३ ॥४१॥
हवे मोक्ष मार्गनेविषे बेउनो विनाश बतावे -अथ मोद पति कथनः
॥ सवैया इकतीसाः ॥- सील तप संजम विरति दान पूजादिक, अथवा असंजम कषाय विषै जोग है; कोउ शुजरूप कोउ अशुन सरूप मूल, वस्तुके विचारत छ विध कर्म रोग है; ऐसी बंध पति बखानी वीतराग देव, श्रातम धरममें करम त्याग जोग है; नौजल तरैया राग दोषको हरैया, महा मोषको करैया एक शुक उपयोग है. ॥४॥
अर्थः- ब्रह्मचर्य तप, पंचेंजिय निग्रह, संवर, दान पुजाप्रमुख क्रिया; पुण्य एबंध
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