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________________ प्रकरण रत्नाकर जाग पहेलो. अथ शुभाशुभ एकत्वीकरनः ॥सवैया इकतीसाः॥ - जैसे काढु चंडाली जुगल पुत्र जने तिन्ह, एक दियो बामन कूं एक घर राख्यो है; बामन कहायो तिन्ह मद्य मांस त्याग कीनो, चंगाल कहायो तिन मद्य मांस चाख्यो है; तैसे एक वेदनी करमके जुगल पुत्र, एक पाप एक पुण्य नांत जिन्न जाख्यो है; हों माहिं दोरधुप दोउ कर्म बंधरूप, पाते ज्ञानवंतने न को जिलाख्यो है. ॥ ३८ ॥ अर्थ :- जेम कोई चंगालनी स्त्री जुगल पुत्र के० वे पुत्र जणे ने पढी एक ढोकरो ब्राह्मणने थपे, ने एक ढोकरो पोताना घरमा राखे, हवे जे बोकरो ब्राह्मणना घ रमां उबरें ते ब्राह्मण केदेवाय, ने ते मद्य मांसनो त्याग करे, जे चंकालना घरमा रहे ते चंगाल के देवाय, ने ते मद्य मांस पण चाखे, ते रीते एक वेदनीय कर्मनां बे पुत्र बे, एक पाप ने बीजो पुण्य, एवां जुदां जुदां नाम कह्यांबे, पण बनेनो स्वजाव एक बे, एटले वेउने विषे दोरधूप के० वेदनानी सत्ता बे. एटले खेदसंताप वे वली पापने पुण्य ए बेउ कर्म बंधरूप बे, एटला वासते ज्ञानीजने ए बेतमांथी कोइनो पण अ जिलाष कीधो नथी. ॥ ३८ ॥ ६३० हवे पाप तथा पुष्यं ए बेजने समान कह्यां तेजपर शिष्य प्रश्न पूबेबे : श्रथ शिष्य प्रश्नः - ॥ चोपाईः ॥ - कोऊ शिष्य कहै गुरु पांही; पाप पुण्य दोऊ सम नांही; कारन रस सुनाव फल न्यारे; एक अनिष्ट लगै इक प्यारे ॥ ३९ ॥ अर्थः- कोई शिष्य गुरुनी पासे श्रावी कहे के, खामी पाप ने पुण्य ए बेने समान कह्यां पण ते समान देखातां नथी केमके, ए बेनां कारण, रस, खजाव तथा फल ते तो जुदां जुदां बे; वली एमांर्थी एक प्रिय लागे बे, ने एक अप्रिय लागे बे. ॥ ३९ ॥ दवे शिष्य ए बेनां कारण प्रमुख जुदां जुदां कड़े बेः - श्रथ शिष्य कथनः॥ सवैया इकतीसाः ॥- - संकिलेस परिनामनिसों पाप बंध होइ, विशुद्धसों पुन्य बंध हेतु नेद मानिये; पापके उदे असाता ताको है कटुक स्वाद, पुन्य उदे साता मिष्ट रस जेद जानिये; पाप संकिलेस रूप पुन्यहिं विशुद्ध रूप, डुढूंको सुनाउ जिन्न भेद यों बखानिये; पापसों कुगति होय पुन्यसों सुगति होय, ऐसो फल जेव परत परवानिये ॥ ४० ॥ -- अर्थः- तीव्र कषायमय जे परिणामडे तेनुं नाम संक्वेश परिणाम, तेथे करीने पा पनो बंध थाय; अने कषायनुं जे मंदपणुं तेने विशुद्ध कहिये; तेवडे पुण्यनो बंध याय; एवा हेतु एटले कारण नेद मानिये बइये. अने पापना उदययी अशाता थाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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