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________________ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. कर्मनो कर्त्ता कह्यो ने ज्ञानी जीवने कर्मनो अकर्ता कह्यो तेनुं कारण कहे बेः-श्रथ मूढ कर्मको कर्त्ता झाता अकर्ता यह कथन: ॥ चोपाईः॥- करै करम सोई करतारा; जो जानै सो जाननहारा; जो कर्ता नहि जानै सोई; जानै सो करता नहि होई.॥३२॥ अर्थः- जे कर्मने करे तेज कर्त्ता कहेवाय अने जे जाणे तेने तो जाणनार कहीये; जे कर्त्ता के तेज जाणनार नयी श्रने जे जाणनार ते कर्ता नयी ॥ ३ ॥ हवे जे जाणनार ले ते अकर्ता बे ते समजावे बे:-अथ झाता अकर्ता कथन: ॥सोरगः॥-शान मिथ्यात न एक, नहि रागादिक ज्ञानमहि; झान करम अ तिरेक, जो झाता करता नही. ॥३३॥ अर्थः-झान नाव श्रने मिथ्यात्व नाव एक कहेवाय नही; अने रागादिक जे राग केष मोह इत्यादिक नाव ज्ञानमा होय नही; एथी झान जे जे ते कर्मथी अतिरेक के जुडुंबे, तेमाटे जे ज्ञाता होय ते कर्त्ता न होय ॥३३॥ हवे जे मिथ्यात्वी जीव बे ते पुजलव्य रूप कर्मनो अकर्ताज ने अने नाव कर्मनो कर्ता डे ते कदे-- श्रथ जीवऽव्य कर्मको अकर्ता यह कथन:-- ... ॥उप्पयबंदः ॥- करम पिंम अरु राग, नाव मिलि एक होहि नहि; दोऊ जिन्न स्वरूप, वसहि दोऊ न जीवमहि; करम पिंड पुजल बिनाव रागादि मूढ नमः अलख एक पुग्गल अनंत किम धरहि प्रकृति सम; निज निज विलास जुत जगत महि, जथा सहज परिनमदि तिम; करतार जीवजम करमको, मोह विकल जन कहहि श्म ॥३४॥ अर्थः-- पुजग अव्य रूप कर्म पिंम अने राग द्वेषादिक नाव ए बंने मलीने एक रूप थाय नही, ए बंने नाव निन्न स्वरूपमां , पण ए बेज नाव जीवमां रेहेता नथी. एनो विवरो कहेजेः-- कर्मपिंड डे तेतो पुजलरूपी बे. अने जे रागादिक विनावडे तेतो मूढ जीवनो भ्रम में अलख जीव तेतो एकता सीधे रह्यो ने अने पुजल श्र नंतताने लेई रह्याने. तो कर्मनुं कर्त्तापणुं एवी सम प्रकृति बेज केम धारण करशे? जगतमां सर्व कोई पोतपोताना स्वजाव विलासमां युक्त थई रह्याने, जेवो पोतानोस हज स्वनाव जे तेवोज परिणमी रह्यो डे ए न्यायनी वात , तेथी जड रूपी कर्मनो की जीव , एवं वचन जे जीव मोहथी विकल होय जे ते कहे ॥ ३४ ॥ हवे सम्यक् प्रकारे करीने सिद्धांत समजावेजे. अथ सम्यक्त्व प्रजाव कथन:-- ॥उप्पयबंदः॥- जीव मिथ्यात न करै, नाव नहि धरै नरम मल; ज्ञान ज्ञान रस रमै, होश करमादिक पुजल; असंख्यात परदेश, सकति जगमें प्रगटे अति; चिद् वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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