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श्री समयसारनाटक.
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तो प्रगट के प्रत्यक्ष प्रमाणमां आवे बे, तेथी अनुभवज महा बलवान थको बिरा जमान थई रह्यो, एथी अनुजव ते अदोष के० शुद्ध बे. हवे अनुजवनां नाम कहे, अव कहिये, प्रमाण कहिये, जगवान कहीये, एनेज पुराण पुरुष कहीये, एनेज ज्ञान कहीये, एने विज्ञानघन कहीये, एनेज महा सुखनुं पोष कहीये, एनेज परम पवित्र कहिये, एवा अनुजवनां अनंत नाम बे. अने ए शुद्ध अनुजव शिवाय बीजे कोई स्थानके मोक नयी ॥ २७ ॥
वे शुद्ध कहे .
व विना संसारमां जमे श्रने शुद्ध अनुभव प्राप्त थये मोह पामे ते व साम्यर्थ जलको दृष्टांतः
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - जैसे एक जल नाना रूप दरबानुयोग, जयो बहु जांति पहिचान्यो न परतु है; फीरि काल पाई दरबानुयोग डूरि होतु, अपने सहज नीचे मारग ढरतु है; तैसे यह चेतन पदारथ विज्ञावतासों, गति योनि नेष जव जावर जरतु है; सम्यक सुजाइ पाइ अनुमौके पंथ धाइ, बंधकी जुगती जानि मुगति करतु है ॥ ३० ॥
अर्थः- जेम पाणी एक रूप बे तथापि तेनेविषे नाना प्रकारनी माटी प्रमुख प्र व्यनो मिलाप थये पाणी पण तरेहवार जातनुं थाय बे, हवे देखवामां तो माटी प्रमुख देखाय बे, पण पाणी श्रोलखातुं नथी. फरी कोई औषधादिकथी ते द्रव्यनो मिलाप डूर यो अने पाणी तरी श्राव्युं त्यारे पोतानुं सहज रूप लईने नीचाण तरफ ढ लवा लग्युं; ते रीते जे चेतन पदार्थ बे ते विजावतासों के० पोतानी मुल थकी चार गतिमां चोरासी लाख जीव योनिने विषे नेष के० एक क्रोड सामासत्ता पुंलाख कुल कोमीमां जातजातना जवकरतो जावरी के० फरी रेहे बे, एज जीव कोई अवसर स म्यग् जाव पामीने पोताना अनुजवना मारगमां दोमीने अने बंधनना विलासने तो मीने कर्मनी मुक्ति करे बे. ॥ ३० ॥
दवे मिथ्यादृष्टि होय ते अनुभव शिवाय कर्मनो कर्त्ता होयज ते कहे बे:- अथ मिथ्यादृष्टि कर्तृत्व कथनः
॥ दोहा ॥ - निशिदिन मिथ्या जाव बहु, धेरै मिथ्याती जीव; ताते जावित कर मको, करता को सदीव ॥ ३१ ॥
अर्थ :- रात ने दिवस पोतानी झूलने विषे मिथ्यात्वी जीव होय ते फलाएं में की धुं में लधुं श्रमारुं इत्यादिक मिथ्या जाव धारे ते माटे अशुद्ध चेतनाजे बे ते विजा वित कर्म तेन कर्त्ता सदीव के निरंतर को. ॥ ३१ ॥
दवे ज्ञानी ने मूढ करम करे बे, ते एक सरखां देखाय बे, तथापि मूढ जीवने
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