SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. ज्रममां धायो थको घणी काया पामीने पोतानी मानी लीधी हती, ते हाल मने झान कला प्राप्त थवाथी चमनी दृष्टि दूर थई गई, त्यारे पोतानी तथा पारकी सोंज के सामग्री ते सर्वने ओलखी लीधी; जे ज्ञान कलाना उदय थवाथी वस्तुनुं परमाण थाय एवी रीत थई तेथी पोतानी परंपरानी शुद्धि श्रावी, एवा निश्चयश्री अमोरी ज्योति जे श्रमारं खरूप तेने श्रमे थोलखी लीधुं ॥२७॥ हवे जे झाता होय ते सम्यक् स्वरूपने शुरु श्रनुजवनेविषे विचारी लिये ते कहे बेः- अथ शुधानुजव चिंतन ज्ञान विलासः ॥सवैया इकतीसाः॥- जैसै महा रतनकी ज्योतिमें लहरि उठे, जलकी तरंग जैसे लीन हो जल में; तैसै शुद्ध श्रातम दरबपरजाय करी, उपजे बिनसे थिर रहे निज थल में; ऐसे अविकलपी अजलपी थानंद रूपी,अनादि अनंत गहि लीजे एक पलमें; ताको अनुत्नव कीजे परम पिऊष पीजे, बंधको विलास मारि दीजे पुदगलमें ॥ ॥ अर्थः- जेम हीरा, लाल, पन्ना अने रत्ननी ज्योतिमा बद्री उठे, ने ज्योतिमांज समाई जाय , वली जेम पाणीना मोजां पाणीमांज समाई जाय, तेम शुद्ध आत्म जव्यना जे ज्ञान प्रमुख गुणना पर्याय बे ते समये समये उपजे ने, ने वणसे , अने अव्य पोताना अव्य स्थानने विषेज रहे. उपज ने वणसवु ए विकल्प पर्यायने श्रा श्रये थाय बे; पण अव्यमां तो थिरता रही , अव्यमां विकल्प नथी माटे जे अवि कल्पक अने अजल्पी के स्थिर सर्वथा वचन गोचर नथी, अने आनंदरूपी बे, तेथी सहज समाधि थईबे, एवं कोश् श्रात्म अव्य, तेनुं अनादि अनंत काल सुधी एक रूपमा ग्रहण करवू, अने तेज अव्यनो अनुनय करवी, एटले तेने विषेज उपयो ग राखवो, ए अनुनवमां परम पिऊष के परम अमृतरस उपजे जे ते पीवो. अने जे आश्रव बंधनो विलास श्रात्मामां ने तेने पुजलनी सामग्रीमा नाखी देवो, एटले पु जलरूप जूउंज डे ॥॥ हवे श्रात्मानो शुझ अनुजव परम पदार्थ बे, तेनी प्रशंसा करे-अथ अनुन्जव प्रशंसाः ॥ सवैया श्कतीसा॥- दरवकी नय परजाय नय दोउ नय, श्रुत झानरूप श्रुतझा न तो परोष है; शुरु परमातमाको अनुनौ प्रगट ताते, अनुनौ बिराजमान अनुनौ अदोष है; अनुनौ प्रवान नगवान पुरुष पुरान, शान औ विज्ञानघन महासुखपोष है, पर म पवित्र योंही अनुनौ अनंत नाम, श्रनुजोविना न कहों उर गेर मोष है ॥ २५ ॥ अर्थः- पदार्थने उलखवाने बेज नय प्रवर्ते , एक व्यार्थिक नय वडे अव्यनो विवरो श्रने पर्यायार्थिक नयवडे पर्यायनो विवरो थाय बे, ए बंने नय श्रुतज्ञानरूप बे, अने श्रुतज्ञान जे जे ते परोद झान बे; अने शुद्ध परमात्मानो अनुभव जे ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy