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श्री समयसारनाटक.
६५३ थथ गुरु उत्तर कथन:॥ सवैया इकतीसाः ॥- दया दान पूजादिक विषय कषायादिक, दोह कर्म लोग पै उहको एक खेतु है; ज्ञानी मूढ करम करत दीसे एकसे पें, परिनाम नेद न्यारो न्यारो फल देतु है; ज्ञानवंत करनी करै पें उदासीन रूप, ममता न धरै ताते निर्जराको हेतु है; बहे करतूति मूढ करै पै मगन रूप, अंध नयो ममता सो बंध फल लेतु है. ॥ २२ ॥
अर्थः- दया पालवी, दान देवू, पूजा प्रमुख करवी, एक एवी रीतनां कर्म,अने पांच इंजियोना विषयनुं सेवन करवू, कषायनुं सेवन करवू; एक एवी रीतनां कर्म बे, ए बंने कर्मनो संसारमा नोग बे, पण देत्र एक बे, तेथी बंने बंधरूप बे. अने ज्ञानी पण ए बे कर्म करे , तथा अज्ञानी पण करे , अने ए कर्म करतां तो ज्ञानी अज्ञानी एक सरखाज देखाय बे, पण एना परिणाम नेद जुदा जुदा माटे ए कर्मनुं फल जुडं जुएं आपे बे. ज्ञानवान जे कर्म किया करेजे, ते उदासीन रूप थईने करे बे, एटले एनी मेले उदय आवेढुं कर्म करे, पण ममता धरतो नथी; ए माटे निर्जरानो देतु बे. अने एज कर्म क्रिया मूढ करे , पण ए क्रिया कर वामां आनंद रूप रहे बे; ने निजात्मशुछिने विसरी जाय जे; एटले अंध जेवो बनी जाय , अने ममता धारण करे डे, तेथी बंध फलने लिये बे; एज माटे श्र ज्ञानी अझाननो कर्त्ता ठरे बे. ॥॥ हवे कुंजारनुं दृष्टांत आपीने मूढनुं कर्त्तापणुं सिक करे:
अथ मूढ कर्तृत्व कथन कुलाल दृष्टांतः॥ बप्पय बंदः॥-ज्यों माटीमहि कलस, होनकी शक्ति रहै ध्रुव; दंड चक्र चीवर कुलाल बाहिज निमित्त हुव; त्यों पुदगल परवानु, पुंज बरगना नेष धरि; ज्ञानी बर नादिक सरूप बिचरंत विविध परि; बाहिज निमित्त बहिरातमा, गहि संसै अज्ञान मति; जगमांहि अहंकृत जावसों, करम रूप व्है परिनमति. ॥ २३ ॥
अर्थः- जेम कलसरूप कार्य थवामां माटी अव्यनी शक्ति ध्रुव के० निश्चय बे. अने ते कार्यनेविषे तेने फेरववानो दंम अने चक्र के चाकने चीवर उतारवानी दोरी ने कुंभार ए सर्व बाह्य निमित्त थयां, तेम परमाणु पुजलनो पुंज ते बंधपणु ध रीने कामणवर्गणानो नेष धरीने झानावरणी, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, था पुष, नामकर्म, गोत्रकर्म,अंतराय ए स्वरूपे विविध के नात जातनो पुजल खंध वि चर्यो; यहीं बहिरात्मा एटले देव मनुष्यादिरूपी बाह्यात्मा बाह्य निमित्त थईने ब्रम
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