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________________ ६२२ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अर्थः- आत्मा ज्ञानस्वरूपी जे माटे ज्ञानने तो तेज करे, पण बीजो नही, ए नि श्चय;अने जे एम कहे जे के,अव्यकर्मनो कर्त्तापण चेतन तेतो व्यवहारमा कहेवाय॥१॥ हवे शिष्य प्रश्नः- कर्तृत्वकथनः॥ सवैया तेईसाः॥-पुदगल कर्म करै नहि जीव कही तुम में समुफी नहि तैसी; कौन करै यह रूप कहो अब, को करता करनी कह कैसी;आपुहि आपु मिलै बितुरै जड क्यों करि मोमन संशय ऐसी; शिष्य संदेह निवारन कारन बात कहै गुरु है कबुं जैसी.॥१॥ अर्थः- हवे शिष्य प्रबे के, जीवने निश्चयनयथी ज्ञाननो कर्त्ता कह्यो ने कर्मनो श्रकर्ता कह्यो, तेनुं शुं कारण? हे गुरु! पुजल व्यरूप कर्मने जीव करे नही एवी जे वात तमे कही, ते वात हुं यथार्थ समज्यो नही. ए पुजलरूपी कर्मनो खनाव करे? यहां कर्त्ता तो ठरावता नथी अने तेनी क्रिया केवी डे ते कहो. वली पुमल कर्मनो कर्ता पुजलनेज बनावोडो त्यारे कर्त्ता कर्म बंने जम थयां, ते पोतानी मेले मलवं बूटा था केम बनी शके ?. ए मारा मनमां संदेह जे. शिष्यनों संदेह निवारवाने आ प्रश्ननो यथार्थ उत्तर गुरु हवे कहेजेः-॥ ११ ॥ अथ गुरु उत्तर कथनः॥दोहाः॥- पुदगल परिनामी दरब, सदा परिनमै सोय; याते पुदगल करमको, पुदगल कर्ता होय ॥२०॥ अर्थः- हे शिष्य! पुद्गल जे जे ते परिणामी अव्य बे. क्षण क्षणमां तरेदवार बनी जाय तेमाटे सदा परिणमी रह्यो बे, ते युक्तिथी पौलिक कर्मनो कर्त्ता पुन लज थई शकेले. ॥२०॥ अथ पुनः शिष्य प्रश्नः-- ॥ अड्डिल बंदः ॥- ज्ञानवंतको जोग निर्जरा हेतु है; अज्ञानीको जोग बंध फल देतु है;यह अचरजकी बात हिये नहि श्रावहीबू कोऊ शिष्य गुरू समुजावही.॥२१॥ ___ अर्थः-हवे शिष्य पूछे के, ज्ञाननाव झानी करे एवं कहेवाथी लोग निर्जरारूपी थाय बे ते केम ? झानी जोग नोगवे ते कर्मनी निर्जरा करेले, त्यारे तो हानीनो जोग निर्जरानो हेतु ने श्रने श्रझानी जे जोग नोगवे ते कर्म बंधन करेले; त्यारे तो अझानीनेज नोग बंध फलदाई कह्यो एतो श्रचरजनी वात; केमके नोग नोगव वामां समान होय ने एकनो लोग निर्जरानो कारक अने बीजानो नोग बंधनो का रक एम केम बने ? अने ए वात हृदयमां उसती नथी. श्राद् शिष्यकेदेवं सांन लीने गुरु तेनो उत्तर कहेजेः-॥१॥ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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