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________________ श्री समयसारनाटक. ६१ शुक चेतन अनुजवनो अभ्यास करे त्यारे पोतेज देखाय. कर्मादिकनो बीजा कोई साथे नेल नथी. पूर्व संचित कर्म जे जे ते निज स्थिति पूर्ण थये अथवा उदीरणा करी के कर्म उदय श्राव्याथी देखाय, पण जीव कांई कर्मनो कर्त्ता नथी,पण ते कर्म ना उदयनो तमासो जुए ॥ १५ ॥ हवे शिष्य पूबे के, हे स्वामी! जीव तथा पुजल एकमेक थई रह्यांबे, त्यारे ते उने विषे एवो जुदो जुदो स्वन्नाव केम जाणीये? त्यारे गुरु तेनो उत्तर आपतां पाणिनुं तथा शाकनुं दृष्टांत आपेः अथ कर्तृत्व स्वन्नाव तप्तोदक तथा व्यंजननो दृष्टांत: ॥ सवैया श्कतीसाः॥-जैसे उसनोदकमें उदक सुजाउ सीरो,आगिकी उसनते फर, स शान लखिये; जैसै स्वाद व्यंजनमें दीसत विविध रूप, लोनको सवाद खारो जीन झान चखिये; तैसै याहि पिंममें वित्नावता अज्ञानरूप, ज्ञानरूप जीव नेद ज्ञानसो परखिये,नरमसों करमको करता है चिदानंद, दरव विचार करतार जावनखिये.॥१६॥ अर्थः- जेम नसोदक के जनुं पाणी ते पाणीनो पोतानो स्वत्नाव तो सीरो के शीतलज डे, पण तेनो स्पर्श करतां गरम लागे ,ते गरमी श्रागनी बे. अने स्वादिष्ट व्यंजन के शाकमां नात जातनो स्वाद होय अने लोन के निमकनो खारो स्वाद जुदोज जणायचे, ते जीन ज्ञानवडे जणायजे; तेमज घटमिमां विजावता जे कर्मनी साथे चेतननु मलq तेतो जेम में था कीधुं एम मानवं, एतो अज्ञानरूप बे. अने जीव ते शुद्ध ज्ञानरूपी बे, एनेतो शुद्ध जाणवो एज एजें कार्य जे. ए वात नेदज्ञान वझे जणाय जे. ए चिदानंद जे जे तेने कर्मनो कर्त्ता मानवो ते भ्रमवडे म नाय ! पण अव्यनो विचार करतां एनो कर्त्ता नाव बने नही पण ज्ञाता जावज बने ए रहस्य . ॥ १६ ॥ हवे निश्चय प्रमाणवडे जे जेनो कर्ता तेने जुदो बतावे . अथ कर्तृत्व विवरण: ॥दोहा॥-झान नाव झानी करै, थानी अज्ञान; दरब करम पुदगल करै, यह निहचै परवान. ॥ १७ ॥ अर्थः- ज्ञानी होय तेतो ज्ञानजाव करे एटले जाणवारूपजे कार्य ले ते करे बे; अने अज्ञानी होय ते हुं कर्त्ता बु एम मानी श्रज्ञानजाव करे; अव्यरूप जे कर्म बे तेने पुजलज करे, निश्चयप्रमाणमां एवं स्पष्ट बे. ॥१७॥ शिष्य पूजे के हे स्वामी! झानन्नाव ज्ञानी करे ए वात कहेता ज्ञाननो कर्ता जी व रे, ते कया नयथी ठरेले? तेनो उत्तर गुरु श्रापेः-श्रथ व्यवहार कर्तृत्वकथनः ॥दोहा॥- ज्ञानसरूपी आतमा, करे ज्ञान नहि उर; दर्व कर्म चेतन करै, यह विवहारी दौर. ॥ १७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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