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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. पीने मतवारो थयो होयने तेने दहीने खांमथी बनेर्बु शीखरण जमवाने श्रापीये ने पुतीये के एनो स्वाद केवो, तो ते कदेशे के गायनुं उध पीये तेवो. पण तेने दा रूनी जुममा जुदा स्वादनी खबर पडती नथी, तेम जीव मिथ्यामतिवालो थईने जो पण अनादि कालनो ज्ञानरूपी बे एटले ज्ञानमय बे तो पण पापकर्म श्रने पुण्यकर्म मां लीन थई रह्यो बे, माटे सहज नावे शुन्यहृदय थयो; त्यारे चेतन अचेतन जे पुजल ते बेउने मिश्र के एक पिंम जोईने एकमेक माने; पुजलना नेलथी चेतनने पण पुजलकर्मनो कर्त्ता माने पण कदी विवेकनी नजरथी जोतो नथी. ॥ १३ ॥ हवे जीवने कर्मनो कर्त्ता मानवो ए चमवडे मनायडे; ते उपर दृष्टांत आपेले.
अथ ब्रमस्वरूपकथनदृष्टांतः॥ सवैया इकतीसाः॥-जैसै महाधूपकी तपतिमें तिसीयो मृग, नरमसों मिथ्याजल पीवनकों धायो है; जैसै अंधकारमांहि जेवरी निरखी नर, जरमसों भरपी सरप मानि
आयो है; अपने सुनाय जैसै सागर सुथिर सदा, पवन संजोगसो उबरि अकुलायो है, तैसै जीव जडसों श्रव्यापक सहजरूप, नरमसों करमको करता कहायो है.॥१४॥
अर्थः- जेम वैशाख ने जेठना घणा सख्त तापनी गरमीवडे मृग तरस्यो थईने मृगजलने जोई तेने जल जरेलुं तलाव मानी ते मिथ्या जलने पीवाने दोमेजे; तथा जेम अंधारे पडेली दोरडीने जोश्ने कोई मनुष्य जरमवडे तेने साप जाणी मरीजायजे; वली जेम समुज्नो स्वन्नाव स्थिर डे पण पवनना संजोग थकी जबलतो देखायने, तेम जीव निश्चय थकी जोतां जड वस्तुथी श्रव्यापक बे, पण अनादि कालनो सह जरूपी व्रम तेणे करीने ते जीवने कर्मनो कर्त्ता कहे. ॥ १४॥ ___ हवे जे सम्यग् दृष्टि थाय ते सम्यक् स्वनावे करीने त्रम दूर करे; अने जुदो जु दोज नाव जाणे, ते उपर राजहंसपक्षीनो दृष्टांत आपेले. अथ सम्यग् दृष्टिस्वनावव र्णनं, राजहंसके दृष्टांतः
॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसै राजहंसके वदनके सपरसत, देखिये प्रगट न्यारो बीर न्यारो नीर है, तैसे समकितीकी सुदृष्टिमें सहजरूप, न्यारो जीव न्यारो कर्म न्यारोई शरीर है; जब शुक चेतनाको अनुनी अज्यासे तब, नासै थापु अचल न मुजो जर सीरहै;पूरव करम उदै श्राश्के दिखाई देहि,करता न हो तिन्हको तमासगीर है॥१५॥
अर्थः- जेम राजहंसनुं वदन के मुखनी अंदरनी जीन, तेना अडकवाथी उधने पाणी एकमेक होय ते फाटीने उघ जुडं ने पाणी जुडं थाय बे; तेमज सम्यग्दृष्टि बडे सहजरूपे जीव डे ते जुदोज जणाय ने कर्म पण जुउंज जणाय; अने शरीर पण जुएंज जणाय, एटले बाह्यात्मा, अंतरात्मा ने परमात्मा ए त्रणे जुदा जणाय. ज्यारे
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