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श्री समयसारनाटक.
६१५ नाना प्रकारनो थयो. अने कोई समये यथाप्रवृत्तिकरण कोई नव्यजीवनो मिथ्यात्व अंधकार नेदायो, ते मिथ्यात्वग्रंथि नेदीने अने सर्व कार्यने विषे जे अहंबुंशिवडे रहे ली ममता हती, तेने बेदीने गुफ चिदानंद जावमांज परिणमी रह्यो, ते समये ते जव्यजीव नेद विज्ञान के जड चेतननो विवेक धारण करीने अविरति, कषाय, योग तथा प्रमाद ए जे बंधनातु हता, तेनो विलास बोडीने श्रात्मशक्तिवडे एटले पोता ना वीर्यबलवडे जगत्ने जीति लीये; जगत्थी निरालो थाय बे. ॥ ११॥
हवे जेम कर्मनो कर्त्ता आत्मा नथी तेम ए कर्म आत्माना करेलां नथी; अने कर्त्ताने कर्म एक रूपज बे ते कहेजेः-अथ यथा कर्म तथा कर्ता एकरूपकथन:
॥सवैया श्कतीसाः॥-शुफनाव चेतन अशुधनाव चेतन, उहूंको करतार जीव थोर नही मानीये: कर्मपिंडको विलास बर्न रस गंध फास, करता उहुंको पुदगलपर मानिये; ताते बरनादि गुन ज्ञानावरनादि कर्म, नाना परकार पुजलरूप जानिये; स मल विमल परिनाम जे जे चेतनके, ते ते सब अलख पुरुष यों बखानिये. ॥ १२ ॥
अर्थः-चेतनाने विषे शुक नाव तथा शुरू नाव जे जाणवामां थावे, ते तो परिणामरूप कर्म जे; तेथी ते बनेनो कर्ता जीवज बे, बीजो कोई कर्ता मानवो नही. अने ज्ञानने ढांक,दर्शनने ढांक, इत्यादि कर्म पिमनो विलास बेधने वर्ण,गंध,रस,स्पर्श, इत्यादि जे कार्य अने कर्म बे,ए बनेनो कर्त्तापुद्गलमव्यनेज प्रमाण राखिये;तेणे करी ने वर्णादि के वर्ण, रस,गंध, स्पर्श गुण ले ते अने झानावरण, दर्शनावरण प्रमुख जे कर्म ते सर्व नाना प्रकारना पुजलरूप जाणवां;जेम कडंबे के,“जोगापयडिपयेसा," के जोगवडे प्रकृतिप्रदेशबंध थाय, ने तेनेविषे चेतनना समलपरिणाम के अशुद्ध परिणाम अने विमलपरिणाम के शुभ परिणाम ए जे कर्मरूपक डे ते ते सर्व श्रल द पुरुषरूप , माटे कर्त्ता कर्मने एकज वखाणीए. ॥ १२ ॥ हवे ए वातना रहस्यने मिथ्यादृष्टि जाणे नही, तेना उपर दस्तिनो दृष्टांतः
अथ मिथ्यादृष्टि बननं हस्तिको दृष्टांत:॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसै गजराज नाज घासके गरास करि, नबत सुनाय नहि निन्न रस लियो है; जैसै मतवारी नहि जानै सिखरनि स्वाद, जुगमें मगन कहै गऊ दूध पियो है; तैसै मिथ्यामति जीव ज्ञान रूपी है सदीव, पग्यो पाप पुन्य सों सहज सुन्न हियो है; चेतन अचेतन मुहकों मिश्र पिंड लखि, एकमेक मानैन विवेक कबु कियो है. ॥ १३ ॥ . अर्थः- जेम हाथीने अनाज साथे घास नेलवीने ग्रास आपेले ते खायजे. हाथीनो स्वन्नाव एवो के, घासने अनाजनो जुदो स्वाद लेतो नथी. वली कोई माणस मद्य
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