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. प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अर्थः-श्रा घटमां अनादि कालनो विस्तारवंत उमरूप महा अविवेकनो श्रखामो मंडाई रह्यो , ते अंखाडामां बीजं कोई शुद्ध स्वरूप तो देखातुं नथी; अने पुजल अव्य जे जे ते अत्यंत मंहोटुं नृत्य करी रह्यो, एज अविवेकनी झा ते अजीव पुजल अव्य . तेहिज एकेडियादिकना वेषमा लेवरावी फेरवी फेरवी वर्णादिकना पसारनी सामग्री लेवरावी कौतुक देखामी रह्यो बे. हवे श्हां विवेकरूप जे जे ते मो हथी जे पुजल जम तेथी जूदो बे. तेहिज चिन्मूर्ति एटले चेतन राजाबे ते तो हां नाटिकनो देखनारो ॥ एए॥
हवे जे जीव अने अजीवनुं एकतापणुं मिथ्या ज्ञानमां जासे, तेतो ज्ञान वृद्धिथी निन्न भिन्न रूप देखाय बे, ते कहेजेः- श्रथ ज्ञान विलास कथन:
॥ सवैया इकतीसाः॥-जैसे करवत एक काठ वीच खंग करै, जैसे राजहंस निर वारे दूध जलकों; तैसै नेदज्ञान निज नेदक शकतिसेंति, जिन्न जिन्न करै चिदानंद पुदगलको; अवधिकों ध्यावै मनपर्येकी अवस्था पावै, उमगिके आवै परमावधि केवल कों; याही नांति पूरन सरूपको उद्योत धेरै प्रतिबिंबत पदारथ सकलकों ॥ १० ॥
श्रथैः- जेम एक लाकमाने करवती वेहेरीने बेनाग करेजे, ने जेम राजहंस सुध ने पाणी एका होय तेने जुदा जुदा करी नाखे बे. तेम जेने नवितव्य परिपाके नेदान प्रगटे ते पोतानी नेदक शक्तिव चिदानंद तथा पुजल एकमेक होय तेने जुदा जुदा करे. अने तेज नेदशान पोताना क्षयोपशम माफक पोतानी अवधिने ध्यावे एटले पोताना अवधि ज्ञानरूप पर्यायने पामे, पडी तेहिज नेद शानथी विशुफ थयेला मनपर्याय अवस्थाने पामे; थने तेथी विशुकथईने परमावधि सुधी पोचे; एम वधते वधते नेदज्ञान थकी पोतानुं वर्ण स्वरूप उद्योतवंत धारण करे, एटले केवल अवस्था धारे; अने सर्व पदार्थने प्रविबित करे ॥ १० ॥ ॥श्ती श्री समयसार नाटकनो बीजो अजीवहार बालावबोध सहित समाप्त थयो.॥
॥ दोहराः॥- यह अजीव अधिकारको, प्रगट बखान्यो मर्म; अब सुनु जीव अजी वके, करता किरिया कर्म. ॥ १०१॥
अर्थः- अजीव द्वार एरीते समजाबीने कह्यो; एनुं रहस्य ए के अजीव पदार्थ जाणीने तेथकी जीव पदार्थ जुदो जाणवो; तेनुं वर्णन कस्खु बे. हवे जीवनेविषे कर्त्ता कर्म क्रियानो विचार अने अजीवनेविषे पण कर्त्ताकर्म क्रियानो विचार गुरु कहे ने शिष्य शांजलेले ॥११॥
हवे कर्त्तापणामां जीवनी मिथ्या दृष्टि डे ते नेदज्ञानथी बुटे, माटे नेदशाननु म हात्म्य कहेजेः-- श्रथ नेद ज्ञान महात्म्य बननः--
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