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श्री समयसारनाटक. ॥ सवैया इकतीसाः॥-रूप रसवंत मूरतीक एक पुदगल, रूप बिन उर युं अजीव दर्व उधा है; च्यारि हैं अमूरतिक जीवनी अमूरतिक, याहितें अमूरतिक वस्तु ध्यान मुधा है; औरसों न कबहू प्रगट थापु थापहीसों, ऐसो थिर चेतन सुनाउ शुद्ध सुधा है; चेतनको अनुनौ आराधै जग तेईजीउ, जिन्हके अखंगरस चाखिवेकी बुधा है.ए॥
अर्थः- जेम रूपवंत तथा रसवंत कहेवाय ने तेम गंधवंत तथा स्पर्शवंत ए लक्ष ण जाणवाथी मूर्तिक एटले मूर्तिवंत ते एक पुद्गल अव्य जाणवू; अने रूपादिक विना बीजा श्रमूर्तिक चार अन्य बे; ए रीते अजीव अव्यते वे प्रकारनुं बेः- हवे ए श्रजीव अव्यमां धर्म, धर्म, आकाश, काल ए चार अमूर्तिक बे; अने जीव जव्य पण अमूर्तिक बे; तेथी को श्रमूर्तिक वस्तुनुं ध्यान करवायी मुक्ति के एम कहेनारा मूर्ख डे. एथी कोई अन्य धर्मनुं श्रालंबन लई थात्मा अव्य प्रगट न थाय एवो स्थिर चे तननो खनाव बे, एज शुद्ध सुधा के निर्दोष अमृत रस तेज चेतनने प्रगट करे , एवो जे जगत्ने विषे चेतना खजावडे ते चेतननो अनुनव के यथार्थ ज्ञान धारा धे तेज शुद्ध जीव अव्यना श्राराधक बे. अने जे अखंग रसना कुधावंत डे ते एना श्राराधक बे.॥ ए॥ ___ हवे कोई कहे डे के, जीव अंगुष्ट प्रमाण , तंमुल प्रमाण ने इत्यादि कहिने जे जीवने मूर्तिमान थापे , तेनी मूढता बतावे . अथ मूर्तिवणेनं:
॥सवैया तेश्साः ॥- चेतन जीव अजीव अचेतन, लछन नेद उनै पद न्यारे; स म्यग् दृष्टि उद्योत विचछन, निन्न लखै लखिके निरधारे; जे जगमांहि अनादि अखंमित, मोद महामदके मतवारे; ते जम चेतन एक कहै, तिन्हकी फिरि टेक टरै नहि टारे॥ए॥
अर्थः- जीवनुं लदण चेतन डे, ने अजीव- लक्षण अचेतन बे; एटले जमता बे; ए लक्षण नेदथी जनय पदार्थ जुदा जुदा बे; पण जेना घटमां समकित दृष्टिन अज वालुं पड्यु , तेज विचक्षण पुरुष ए बेहुने निन्न जिन्न जाणे . अने जीव श्रजी व जुदा निरधार करे. अने जे जगत्ने विषे अनादि कालना अखंडित, मूर्ख, अनेम हामोहमदवमे मतवाला बे, ते लोक जम चेतनने एक कहे . अने जीवने मूर्तिमा न मानेले. ते मिथ्यादृष्टिने लीधे माने तेमनी टेक टालवाथी टले नही एवी होय।एज॥
हवे अजीव पुद्गलमां जीव विलास जूदोज , पण थविवेकी पुरुष ते जाणतो नथी अने जे ज्ञानी होय ते जाणे ते कई बेः- श्रथ ज्ञाता विलासः
सवैया तेईसाः॥- या घटमें जमरूप अनादि विलास महा अविवेक अखारो; ता मंदिर सरूप न दीसत, पुजल नृत्य करै अति जारो; फेरत नेष दिखावत कोतुक, सो जलिये बरनादिपसारो; मोहसँ जिन्न जुदो जडसों चिन्, मूरति नाटक देखनहारो॥एए॥
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