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श्री समयसारनाटक.
६११ अथ वस्तु व्यवस्था वर्णनं:॥दोहराः॥- चेतनवंत अनंत गुण, सहित सु श्रातमराम, याते श्रनमिल और सब, पुजलके परिणाम ॥ ए० ॥
अर्थः-चेतनावंत ने श्रने अनंत गुणसहित जे पदार्थ ले ते तो श्रातमाराम जाणवो; अने जे एटलां लक्षणोथी मलेला नथी ते सर्व अपर पुजलना परिणाम जाणवा. ॥ ए॥ हवे एवी पिगन अनुजवविना न होय माटे अनुजवनी प्रशंसा कहेजेः
श्रथ अनुभव प्रशंसाः॥कवित्त बंदः॥-जब चेतन सँजारि निज पौरुष, निरखै निज दृगसों निज मर्म, तब सुखरूप विमल अविनाशक, जानै जगत शिरोमनि धर्म; अनुनौ करै शुद्ध चेतनको, रमै सुनाउ वमै सब कर्म, शहि बिधि सधै मुक्तिको मारग, अरु समीप श्रावै शिव सर्मः ॥ ए॥
अर्थः-ए चेतन जे , ते ज्यारे पोतानुं पुरुष के पराक्रम संजारे, ने पबी पोतानी दृष्टि करी पोतानुं मर्म जे चेतनपणुं बे ते निरखे; त्यारे पोतानो धर्म के स्वन्नाव सुख रूप जे निर्मल पणुं, अविनाशी पणुं, जगशिरोमणीपणु, सहज स्वरूप तेने जाणे. एज श्रनुजव एटले जे निःसंदेह यथार्थ ज्ञान के तेज चेतनने शुरू करे, अने एज अनुजव जे जे ते पोताना खनावमां रमे श्रने सर्व कर्मने दूर करे, एरीते श्रनुजव वडे मुक्ति मार्ग सिफ थायजे; अने शिवशर्म के मोदनुं सुखते पामे ॥ ए१॥ हवे ए अनुजवथकी चेतनविषे पोतानुं अस्तित्व साधीने परतुं नास्तित्व साधेजेः
अथ अनुजव प्रशंसाः॥ दोहराः॥- बरनादिक रागादि जम, रूप हमारो नांहि; एक ब्रह्म नहि दूसरो, दीसे अनुजव मांहि.॥ ए॥
अर्थः-श्रा शरीरमा जे वर्ण, गंध, रस,स्पर्श राग द्वेषादिक पदार्थनेविषेमोह लेते मारं आत्मरूप नश्री; धने अनुभव विष पोतानुं एकज जाणपणानुं रूप श्रमे जोश्ये बश्ये. पण बीजुं रूप जोता नथी. ॥ ए॥ ___ हवे जीव अजीव एक क्षेत्रावगाही थया ते जुदा केम कहेवाय ? ते उपर दृष्टांत कहेजेः- अथ वस्तु विचारः
॥ दोहराः॥- खांगो कहिये कनकको, कनक म्यान संयोग; न्यारो निरखत म्यान सों, लोह कहैं सब लोग. ॥ ए३ ॥
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