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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो.
बिदारी है; नेदज्ञान दृष्टिसों बिबेककी सकति साधि, चेतन अचेतनकी दशा निरवारी है; करमकी नासकरी अनुज अन्यास धारी, हिये में हरख निज शुद्धता संजारी है; अंतराय नास गयो शुद्ध परकास जयो, ज्ञानको विलास ताकों बंदना हमारी है.
अर्थः- प्रथमथी जे ज्ञानवडे जव्य लोकना श्रात्मामां गणधरनी माफक तत्त्वनी परम प्रतीति उपजावी, अने समकालपणे अंतरात्माने विषे अंतरनी जे अनादिनी वि जावता ( मूढता) तेने विडारीबे, घने जड चेतन ए बने जिन्न बे एवं नेदज्ञान प्रगटयुं तेन दृष्टि तेज विवेकनी शक्ति ते साधि एटले जुदा जुदा गुण पर्याय जाण्या, अने जुदा जुदा जाणीने चेतन तथा जड तेनी दशा ठीक कीधी, ते पछी गुण श्रेणिने ध रीने कणेक्षणे कर्मनी निर्जरा करवा लाग्यो, ते करी अनुभव अन्यास कीधो, एटले सत्य प्रत्ययमां पेठो, अने दयाने विषे हर्ष पाम्यो अने पोतानी शक्ति उत्कृष्ट कीधी. ए कार्य तां अंतराय कर्म जांग्युं, अने केवल रूप प्रकाश पाम्युं, एवो कोई कमे *मे करी ज्ञाननो विलास उत्पन्न थयो, तेने श्रमारी वंदना ॥ ८८ ॥
शिष्य पूबे ने के, स्वामी ! तमे जे ज्ञान विलास कह्यो, तेतो तेवोज बे, पण ते पा मनुं दुर्लन बे. ते उपर गुरु परमार्थनी शिक्षा दिये बेः-थ परमार्थ शिक्षा कथन:
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - नैया जगवासी तूं उदासी व्हैके जगत्सों, एक महीना उपदेस मेरो मानु रे; और संकलप विकलपके बिकार तजि, बैठके एकंत मन एक ठगेर खानु रे; तेरो घट सर तामें तुंही है कमल ताकों, तूंही मधुकर है सुवास पहचानु रे; प्रापति न है है तु ऐसो तूं विचारतु है, सही व्हे प्रापति सरूपयाही जानुरे ||८||
अर्थः- अरे जीव जगत्वासी नाई तुं जगत् के० जब जमणा तेनु कारण ( शब्द, स्पर्श, रूप, रसने, गंध, ) एने याचारांग सूत्रना वचनथी जगत् कहियें, तेथी उदास थईने, एक महिना सूधी अखं धाराए मारो उपदेश शांजल एटले मान्य कर.
मां महीना कह्या ते उपलक्षणथी जाणवा, पण नियम नथी, अने श्रातरौद्रध्या नयी ज्ञान दशामां संकल्प विकल्प घणा ऊठे, तेथी श्रात्माने विषे विकार उपजे बे, माटे ना विकार तजीदे ने एकांत आसने बेसी मनने एक ठेकाणे परिणामश्री राख तारो घट के० शरीर तेनेज सरोवर जेवो देख; अने तेमां एक उज्वल कमल जोइयें, ते कमल तुंज बे; श्रने तुंज उज्वल रूपने लीधे मधुकर रूपे था; एम कर वाथी तुं सहस्र दल कमलमां विलास कर; ए पिंमस्थ ध्यान लगाव्यं एटलुं कार्य क वाथी पोताना स्वरूपनी प्राप्ति न थशे एवं तुं क्यारे पण विचारीश नही. एवा प्राणा यामवडे कमल कोष खुलशेने पोताना रूपनी प्राप्ति यशे; एज रीते ज्ञानगुण खुलशे ॥८॥ वे जीवने जीव एक सरखा थई रह्याबे, ते जुदा जुदा लक्ष्णवडे देखाडेते.
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