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________________ . श्री समयसारनाटक. ६०ए ते मटी गयो. अहीं दृष्टांत कहेजेः- जेम पाकी इंटनी जठीमां गालवाथी सुवर्ण नि र्मल थायडे, तेम शुभ चेतन निर्मलरूप थईने प्रकाश रूप थयो. ॥ ५ ॥ हवे विजाव बूटवाथी निज स्वरूप प्रगटताने पामे तेउपर नटी जे नाचनारी स्त्री, तेनुं दृष्टांत कही देखाडे बेः-अथ वस्तु स्वरूप कथन पातरको दृष्टांतः सवैया इकतीसाः॥- जैसै कोन पातर बनाय वस्त्र बाजरण, श्रावतिथखारे निशि श्राडो पट करिके; उहू उर दीवटि संवारि पट दूरि कीजे, सकल सजाके लोक देखै दृष्टि धरिके; तैसै ज्ञान सागर मिथ्यात ग्रंथि जेद करि, उमग्यो प्रगट रह्यो तिहुं लोक नरिके; ऐसो उपदेस सुनि चाहिये जगत जीव, सुद्धता संजारे जग जालसों निकरिके. ॥ ६ ॥ - अर्थः- जेम कोई नाचनारी स्त्री श्रामो पट करीने तथा वस्त्रानूषणवडे पोतानो वेष मनोहर बनावीने रातना वखते अखामामां श्रावी ऊनी रहे, ते थामा पटथी रात्रीनेविषे देखाय नही, ने ज्यारे अंतरपट पूर करी बेहु तरफ हाथमा काकडा स लगावी परिब्द दूर करे त्यारे सर्व सजाना लोक दृष्टि धरीने तेनां रूप शणगार व गेरेनी शोजा प्रगट जोई रीके बे, तेम झाननो सागर एवो जे श्रात्मा, ते मिथ्यात्व रूप श्रामा पटथी प्रबन्न रह्यो हतो, ते कोई समे मिथ्यात्व ग्रंथी रूप पटने नेदीने प्र गट थयो; ते ज्ञान समुह त्रण लोके नरी रह्यो बे; एटले त्रणे लोक ए आत्माने विषे नासी रह्या बे. हवे गुरु कहे के अहो ! जगत्वासी जीव, में जे पूर्वे उपदेश दीधो एवा उपदेशनुं श्रवण करवु तारे जरूरनुं बे; ते सांजली जगत् जाल मांथी नि कलीने तारी शुभ दशाने संजारी ईश. ॥ ६ ॥ ॥इति श्रीसमयसारनाटिकना प्रथम जीव हारनुं निरूपण बालबोध सहित समाप्त थयु.॥ ॥दोहरोः॥-जीव तत्व अधिकार यह, कह्यो प्रगट समुजाश्; अब अधिकार अजी वको, सुनो चतुर मन ला. ॥ ७ ॥ अर्थः- जीवतत्त्वतुं जेतुं स्वरूप तेनो ए अधिकार एटले स्वरूप, लक्षण, गुण, प्रगट समजाव्यां. हवे बीजो जे अजीवधारने, तेमां अजीवनो अधिकार मुख्यपणे क रीने कहुंडं; ते चतुर लोको चित्त दईने सांजलजो. ॥ ७ ॥ _हवे अजीवने पण ज्ञानवडेज जाणवानुं बने अने आ ग्रंथमा अनिधेय ज्ञान माटे संपूर्ण ज्ञाननी अवस्था निरूपण करेजेः-श्रथ ज्ञानकी व्यवस्था कथनः ॥सवैया श्कतीसा॥-परम प्रतीति उपजागनधरकीसी, अंतर अनादिकी विजावता .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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