________________
प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो.
अथ व्यवहार कथनं.
॥ दोहराः ॥ - एक रूप आतम दरब, ज्ञान चरन दृग् तीन; जेद जाव परिनाम सो विवहारे सु मलीन ॥ ६५ ॥
६०१
अर्थः- दवे ज्ञान, दर्शन, चारित्रनुं त्रिक बे ते व्यवहार नयथी थाय बे; ते कहे :- श्रात्म द्रव्य जे बे ते एकरूप बे, ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र ए त्रण जे बे ते नेद जाव परिणाम बे; त्यारे एक विषे त्रण भेद थया तेथी ए व्यवहार नयवडे समल रूप थयुं. ॥६॥ sar निश्चय स्वरूप कथन
॥ दोहराः ॥- यदपि समल विवहारसों, पर्यय शक्ति छानेक; तदपि नियत नय देखिये, शुद्ध निरंजन एक. ॥ ७० ॥
अर्थः- निश्चयनयेकरी निर्मल स्वरूपमांज ध्यावतुं जलुं वे ते केदेबे :- यद्यपि व्यव दारनयनी अपेक्षाथी श्रात्माने विषे अनेक शक्ति अनेक पर्याय देखायबे; माटे ते स मल बे; तोपण निश्चय नयनी अपेक्षायी शुद्ध निरंजन एकज जाण्यामां आवे ॥ ७० ॥ अथ शुद्ध कथन.
॥ दोहराः ॥ - एक देखिये जानिये, रमि रहिये इक तौर; समल विमल न विचा रिये, हे सिद्धि नहि और. ॥ ११ ॥
अर्थः- हवे शुद्धरूपीज उपादेय बे एवं केदेबे :- जे एक शुद्ध चेतनामय रूपज देख ते दर्शन, तेमज जाणवुं ते ज्ञान; अने तेमां जे रमि रहेतुं ते चारित्र बे; ते न यनी अपेक्षाव समल अथवा विमल रूप विचारखं नही. एहिज सिद्धि कहिये, पण बीजा स्वरूपमा सिद्धि नथी. ॥ ७१ ॥
अथ शुद्ध अनुभव प्रशंसाः
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - जाके पद सोहत सुलहन अनंत ज्ञान, विमल विकासवंत ज्योति लहलही है; यद्यपि त्रिविध रूप व्यवहारमें तथापि, एकता न तजै यों नियत कही है; सो है जीव कैसीहू जुगतिके सदीव ताके, ध्यान करिबेकों मेरी मनसा उमदी है; जाते अविचल सिद्धि होतु और जांति सिद्ध, नांहि नांहि नांहि यामें धोखो नहि सही है. ॥ ७२ ॥
अर्थः- हवे एवा स्वरूपनो अनुभव स्थिर रहेवो ते दुर्लन बे, माटे सर्व ज्ञाता एनो मनोरथ करे बे. जेनेविषे अनंत ज्ञानरूप सुलक्षण शोनेबे, अने विमल विकास वंत के० पोतानुं तथा परनुं जाणवुं एवी ज्योति जेनेविषे लहलही बे, छाने यद्यपि व्यवहारनयमां बाह्यात्मा, अंतरात्मा, तथा परमात्मा ए त्रिविध रूप बे, तथापि निश्च नयनी अपेक्षाथी एकताने त्यजे नही एवं एकरूपी कर्तुं बे; ते एवो पदार्थतो जीव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org