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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. ए पांचे अव्य ग्रहण कीधां श्रने नवतत्त्वरूप धारण कर्यां पण एमां कोई अरूपी महा तेजवंत अव्य जे ते तो कोई प्रत्यक्ष प्रमाणे ग्रहण थतुं नथी, थने अनुमान वडे लश्ये बश्ये, तेवारे शिष्ये पुब्युंके, अनुमान केQ करीये ? त्यारे गुरु कहे गोर ठगेर उद्योतवान प्रकाशवान अव्य देखाय, तेतो बीजुं कोई अव्य नही, पण एक आ त्मारामज जाणवो; ए अशुद्ध निश्चय नयथी जीव कह्यो. ॥ ६० ॥
हवे एवीरीते जे खोजना करीने परिचय पामिये तेने अनुनव कहिये, ते अन जवनुं स्वरूप केवी रीते बे ? एवं शिष्ये पूछे थके गुरु सूर्यना दृष्टांते कहेजेः
। श्रथ अनुजव व्यवस्था सूर्य दृष्टांत. ॥सवैया इकतीसाः॥-जैसै रविमंगलके उदै महिमंडलमें, श्रातप अटल तम पटल विलातु है; तैसै परमातमाको अनुनी रहत जो लों, तो लों कहूं सुविधा न कहू पत्र पातु है; नयको न खेश परवानकोन परवेश, निपके वंसको विधंस होतु जातु है; जे जे वस्तु साधक हैं, तेउ तहां बाधक हैं, बाकी रागदोषकी दशाकी कौन बातु है॥६॥
अर्थः-जेम सूर्यमंडलना उदयथी पृथ्वीमंडलमां श्रातप के तावरो अटल थई जाय, अने तम के अंधकारना पमल नासी जाय, प्रकाश उद्योत थाय, तेमज शुद्ध निश्चयनयना बलवडे ज्यांसुधी अंतरात्मानेविषे परमात्मानो अनुजव रहे, त्यांसुधी कांई पण विविधता न देखाय, पोतपोताना मतनो पक्षपात न रहे, अने यहीं न यनो लेश के अंश न पामिये. नय तो तेने के, जेणेकरीने वस्तुनुं साधन कराय अने अनुभव तो सिक वस्तुनो होय माटे अहीं अनुनवमां नयनो लेश नथी अने एमांप्र त्यद परोदादिक प्रमाणनो पण प्रवेश नथी, केमके जे प्रमाण होय ते तो असिझनुं साधन करे पण सिद्ध वस्तुने शुं साधशे ? अने नाम, स्थापना, अव्य, नाव ए चार नि देपा बे, तेपण असिक वस्तुनुं साधन करे , ते तो जेवारें परमात्मानो अनुनय सिक थयो त्यारे निदेपाना वंशनो विध्वंसज थयो. जेम सूर्यना प्रकाशवडे अंधकारनो नाश थायडे, तेम ए सर्व विलय थाय बे. या परमात्माने नयप्रमाण निक्षेपादिक वस्तु जे जे साधक डे ते सर्व वस्तु परमात्माना अनुलवमां बाधक बे; ज्यांसुधी नयप्रमाण अने निदेपानो परिवार होय त्यां सुधी शुद्ध अनुनव न होय एटलासारु ए बाधक बे. बाकी राग द्वेष दशानी शुं वात केहेवी ? तिहां तो नयादिक कहेवाज जोश्ये. ॥६॥
हवे अनुनवमां शुद्ध रूप जीवज लख्यो तेनी व्यवस्था वचन गोचर जेवी होय तेवी केहेजेः- श्रथ जीव व्यवस्था विवरण हार.
पथमिस बंदः॥-श्रादि अंत पूरन सुनाव संयुक्त है; पर स्वरूप परजोग कल्पनामुक्त है; सदा एक रस प्रगट कही है जैनमें, शुद्ध नयातमवस्तु विराजे वैनमें ॥ ६ ॥
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