________________
एए६
प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो.
श्रथ निश्चय व्यवहार कथन. ॥सवैया तेईसाः-ज्यों नर कोनगिरै गिरिसों तिहि, सोश हितु जु गहै दिढ बांही, त्यों बुधकों विबहार ललो तबलों जबलों शिव प्रापति नाही; यद्यपि यों पर बान तथापि सधै परमारथ चेतनमांही; जीव श्रव्यापक है परसों विवहार सुतौ परकी परबांही ॥ ५७ ॥
अर्थः-जेम कोई पुरुष पाहाडनी उपरथी नीचे पमतो होय ने बीजो पुरुष तेनो हाथ मऊबुत काली रही तेने पमतो अटकावी राखे ते तेनो हित करनार कहेवाय%; तेम पंमितीने ज्यां रूधी शिवसुखनी प्राप्ति नथी थई, त्यां सुधी व्यवहार नलो बे; एटले चोथा गुणगणाथी लईने चौदमा शैलेसीकरण गुणगणासुधी व्यवहारनुं आलं बन बे; यद्यपि ए रीते व्यवहार बालंबन प्रमाण बे, तथापि परमार्थ ज्ञान दर्शन चा रित्रनुं शुरूपणु चेतनमांज सधाय; बीजाथी न सधाय; अने जीव जे जे ते पोताना गुणमयी बे, पोताना गुणमा व्यापी रह्यो; परंतु पर के कर्मादिक जडजीव सत्ताथी न्यारा, ते साथे जीव अव्यापक बे. अने व्यवहार तेतो परनी बायामां रहे, ए टले परनी निश्राविना व्यवहार न होय माटे व्यवहार करतां निश्चयनय शुफ ॥५॥ __ हवे शुफनिश्चयनयथी जे सम्यग् दर्शन प्रगटे जे तेनी व्यवस्था विशेषपणे जाण वाने अर्थे कहे, अथ सम्यग् दर्शन व्यवस्था कथन.
सवैया इकतीसाः॥-शुद्ध नय निहचै अकेलो थापु चिदानंद,अपनेही गुण परजा यको गहतु है; पूरन विज्ञान घन सोहै विवहार मांहि, नवतत्त्वरूपी पंच ऽव्यमें र दतु है; पंच व्यनवतत्त्व न्यारे जीव न्यारो लखै, सम्यग् दरस यहै उरतैन गहतु है; सम्यग् दरस जोई आतमसरूप सोई मेरे घट प्रगव्यो बनारसी कहतु है॥५॥
अर्थः-शुरू निश्चय नयनी अपेक्षा सेवाथी चेतनामय जे पदार्थ बे, ते पोतानी स त्ताये पोते एकलोज : अने पोतानाज ज्ञानादिक गुणना पर्यायना अवस्था नेदने ते ग्रही रह्यो. श्रने तेज सामान्य ज्ञानने शोधो. जे षट् अव्यादिक विशेष ज्ञान तेने विज्ञान कहीये; अने तेनुं पूर्ण घन के पिंम ते ए व्यवहार नयमांज देखायले; अने एज व्यवहार नयथी नवतत्त्वरूप लई धर्मादिक पांच अव्यमां एकत्र थई रहे. अने एवाज व्यवहारमा शुक निश्चय केवलना पांच अव्य न्यारा डे एम जाणवू अने नवतत्त्वने पण न्यारा जाणवा; एवी अव्य दृष्टिथी अन्य उपाधिनो आश्रय ग्रहण करे नही, तेनेज सम्यग् दर्शनी कहीये, अने जे सम्यग् दर्शन , तेज श्रात्मस्वरूप मारा घटमां प्रगट्यु एवं वणारसीदास कहे ॥ ७ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org