________________
___ श्री समयसारनाटक.
ԱԱՀ णस तरेदवार रीते नाचवा लागे, तेम अनादिनुं मोह कारण पामीने चेतन जे डे ते पोतानो शुक स्वजाव बांमीने विनावथी मूळ पामी रह्यो. हवे समयसार के आत्मानुं वर्णन करतांज मुऊने परम शुद्धताना स्वनावनी थोलखाणथई एटले शुभ स्वनावनी खबर पडी तेथी विनावपणु नाश पाम्यु. तेथी अनायास के० घणा ग्रंथ वाचवानो प्रयास कीधा विनाज वणारसीदास ज्ञाता कहे, के सहज के
आत्माने संगे अनादियी चमनी अरुफ ते मिथ्यामत मग्नता लागी रही ते मारी मिथ्यामत मटी जाथो. ॥ ५५ ॥
हवे श्रा जीवनी शुझता ते श्रागमथी पामीये, माटे आगम वर्णवे. अथ श्रा गम व्यवस्था कथन.
॥सवैया श्कतीसाः॥-निहचैमें रूप एक विवहारमें अनेक, याही नै विरोधमें जगत् जरमायो है: जगके विवाद नासिबेको जिन श्रागम है, जामें स्यादवाद नाम लबन सुहायो है; दरसन मोह जाको गयो है सहजरूप, श्रागम प्रमान जाके हिरदेमें आयो है; अनैसो अखंमित अनुतन अनंत तेज, ऐसो पद पूरन तुरत तीन पायो हे.॥५६॥
अर्थः-सर्व आगम ज्ञानरूप निश्चयनयमां एकरूप देखाय बे, अने व्यवहार न यनी अपेदावडे अनेक रूप देखाय बे; पण व्यवहार नयमां नयनो विरोध महोटो बे, एज नय-विरोधमां जगत् नरमायुं , अने एज ब्रमवमे जगत्मां वादविवाद उपज्यो बे, माटे जगत्नो विवाद मटामवाने वचमा प्रमाणिक साहीरूप जिनेश्व रनो आगम बे; जे श्रागममां स्याहाद नाम लेवाथी सर्वपदार्थ- लक्षण सर्वने सो हावे जे; स्यात् एटले केवारेक अव्य अष्टिए देखीए त्यारे ए नय साचोने केवारे क पर्याय दृष्टिए जोश्ये त्यारे ए नय साचो; एवं कहे थके शिष्य पूबे के एवो स्या छाद सहित जिन आगम प्रमाण , त्यारे सर्वना हश्यामां केम थावतो नथी ? जे पुरुषनो अनादि कालनो मिथ्यादर्शनमोह गयो , तेना हश्यामां ए जिन भागम प्रमाणरूप श्राव्यो, पण मिथ्यादर्शनमोहवालाना इदयमां ए श्रावे नही; हवे स्याहादना जाणनारने के फल मले ते कहेजेः-जे पद नय रहित बे, एटले नयनी पेठे नथी, केमके, नयतो एकांत ग्राही बे, ते पूर्ण पदने केम ग्रहण करी शके? श्रने पूर्ण पद अखंमित, ने ते वली अनादि कालथी बे, माटे अनूतन के पुरातन डे एवं अनंत तेजवाबुं पूर्ण पद तेने ते तुरत पाम्यो ने ॥ ५६ ॥
हवे निश्चय अने व्यवहार नयने लीधे श्रागम कह्यो, तेवारे शिष्य पुनेठे के एबे नयमां कार्य सिधिकारी नय कयो ? तेनो उत्तर गुरु थापे ने.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org