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________________ १८६ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. हित बहार लीए ते एषणा समिति; वस्त्र पात्र निरषीने ले ते श्रादान समिति; मलमू त्रादिक जोने परठवे ते पारीठावणीया समिति. ए पांच प्रकारे समिति ॥ ५५ ॥ वे जे अवश्य करीए ते श्रावश्यक कहीए तेनां नाम कहेबे, - अथ षडावश्यकयथाः॥ दोहराः ॥ - समता वंदन श्रुति करन, पडिकमणुं सजाउ, काजसग्ग मुद्राधरन ए मासिक जाउ ॥ ५६ ॥ अर्थः- सामायिक धर १, गुरुवंदना करवी २, चोवीश जिनेश्वरनी स्तुति करवी ३, प्रतिचारथी निवर्त्तनुं ते पक्किम ४, स्वाध्याय करवो ए, काउसग्गमुद्रा धरवी. हे ! नाइ ! ए आवश्यक कहीए. ॥ ५६ ॥ हवे विरकल्प ने जिनकल्पनो नेद कहे :- अथ स्थिविर कल्पी जिनकल्पी : ॥ सवैया इकतीसाः ॥ - थविर कलपी जिनकलपी डुविध मुनि, दोन वनवासी दोन नगन रहत है; दोन ठाईस मूल गुन के धरैया दोन सरव तियागी व्है विरागता गह त है; विर कल पिते जिन्द के सिष्य साषा होई, बेठके सजामे धर्म देसना कहत है; ए काकी सहज जिन कलपी तपस्वी घोर, उदेकी मरोरसुं परिसह सहत है. ॥ ५७ ॥ अर्थः- थिवर कल्पी ने जिन कल्पी ए वे प्रकारना मुनीश्वर होय. ए वे वनवा समां रहे. अने बेदु नागार हे; ए बे अठावीस मूल गुणना धारनार ए वे सर्वस्त्र के० सर्व परिग्रहना त्यागी थईने वैरागजाव धरे. एवा कह्या पण ते बेमां स्थिवरकपी ते कहीए जेने शिष्य शाषा होय, छाने सजामां बेसिने धर्म देशना करे ने जे जिन कल्पी होय ते एकाकी होय, घोरतपस्वी होय. छाने कर्म उदयनी मरोरथी जे परि यह उपजे बे ते सहन करे, ए दिगंबर संप्रदायिक वचनो बे ॥ ५७ ॥ हवे प्रसंगी बावीस परिषद साधुने सवदा योग्य तेनां नाम कहेबे :बावीस परीषद यथा कथनः ॥ सवैया इकतीसाः ॥ - ग्रीषममे धुप थिति सीतमे अंक पचीत, जूषेधरेधीर प्यासे नी र न चहतु है; मंस मसका दिसों न मरे भूमि सैन करे, वध बंध विश्रामे अडोल व्हैर तु है; चर्या दुख नरे तिन फाससों न थरहरे, मल डुरगंधकी गिलान न गहतु है; रोगको न करे इलाज एसो मुनिराज, वेदनीके उदे ए परिसद सहतु है. ॥ ५८ ॥ श्रर्थः - उष्ण कालमां तमकामां श्रताप सहे, शीत कालमां शीत सदेवाथी चि मां कंपे नही, मुख्यो बतां धीरज राखे, अनेषणी ग्रहे नही, प्यासवंत थको सदोष पाणीनी चाहना करे नही, नागा शरीरने मांस मसकादि करडे तोपण मरे नदी, धर तिये शय्या करे, मरणांत कष्ट यावे जातजातना वध बंधनादिक कष्ट तेथी श्रमोल रहे, पण चलायमान न थाय, चर्या के० विहारनुं दुःख जरे, तदरीते विहांरमां तथा सय Jain Education International For-Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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