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श्री समयसारनाटक.
उज्य हवे पांच प्रमादनां नामनी गणत्री करे:-अथ पंच प्रमाद यथाः॥ दोहराः ॥-धरमराग विकथा वचन, निजाविषय कषा; पंच प्रमाद दसासहि त, परमादी मुनि राश. ॥५॥
अर्थः-धर्मउपर राग राखे, विकथा वचन बोले, निजासेवे, रस ते इंजियप्रमुखना वि षय सेवे, कषाय सेवे, ए दशासहितजे मुनिराज होय ते प्रमादी कहीए. ॥ ५ ॥ हवे श्री मुनिराजना अगवीस मूल गुण कहेजेः-अथ श्राइस मूलगुन कथन:
॥सवैया इकतीसाः ॥-पंच महाव्रत पाले पंच समिती संन्नाले, पंच इंतिजीति जयो जोगी चित चेनको; षट श्रावशक क्रिया दर्वित नावित साधे, प्रासुक धरा मे एक श्रासन है सेनको; मंजन न करे केस ढुंचे तन वस्त्र सुंचे, त्यागे दंतधावन में सुगंध खास चेनको; गढो करणे थाहार, लघु जुंजी एकवार, अठाइस मूल गुन धारो जती जैनको ॥ ५३॥
अर्थः-"सबाज पाणा वायाउवेरमणं” इत्यादिक पंच महाव्रत पाले; यासमिति प्र मुख पांच समिति संजालीने करे अने पांच इडियनो जीतनार एटले जेने इंजियोना विषय सेवतां चित्तमां चेन न उपजे, तेथी विषयोनो त्यागी थाय. सामायिक प्रमुख बावश्यक क्रिया , ते अव्यथी पण साधे श्रने नावधी पण साधे, ए २१ गुण थया. फासू पृथ्वी प्रमुख शय्यामां प्रमाणोपेत एक शयन आसन राखे, ए २५ गुन थया. स्नान न करे, केश लोच करे, शरीर विषे वस्त्रनो त्याग करे, दांतण नकरे, श्वासवदननो सुगंध मूखलुण प्रमुख नले, उन्नो उनो थाहारकरे लघुता के अंतप्रांत आहार मुंजे, तेपण एक टंक खाय. ए अगवीस मूल गुणनो धरनार जैन दर्शनी जती होय ॥ ५३ ॥
___ ए दिगंबर संप्रदायथी गुण कह्या जे.
हवे पांच महावत कहेजेः-अथ पंचवत यथाः॥ दोहराः॥ -हिंसा मृषा श्रदत्त धन, मैथुन परिग्रह साज;
किंचित त्यागी अनुवती, सवि त्यागी मुनिराज. ॥ ५४॥ अर्थः-जीवघात, असत्य, चोरी, मैथुन, परिग्रहसामग्री ए पांचे श्राश्रवने किंचित् त्यागे, ते अणुव्रती श्रावक कहिए अने सर्वथा त्यागे ते मुनिराज कहिए ॥५४॥ हवे पांच प्रकारनी समिति एटले सावधानपणुं कहे:-अथ पंच समिति यथाः
॥ दोहराः ॥-चले निरपि जाषे नचित, नषे अदोष थाहार;
खेश निरखि डारे निरखि, समिति पंच परकार ॥ ५५ ॥ अर्थः-जोईने चाले ते इा समिति; योग्य वचन बोले ते जाषा समिति; दूषणर
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